गुरुवार, 19 अक्टूबर 2023

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*पीसे ऊपर पीसिये, छांणे ऊपर छांण ।*
*तो आत्म कण ऊबरै, दादू ऐसी जाण ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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*झेन कथा – मन की धूल*
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एक युवक अपने गुरु के पास वर्षों रहा, और गुरु कभी उसे कुछ कहा नहीं। बार-बार शिष्य पूछता कि मुझे कुछ कहें, आदेश दें, मैं क्या करूं ? गुरु कहता, मुझे देखो। मैं जो करता हूं, वैसा करो। मैं जो नहीं करता हूं, वह मत करो, इससे ही समझो। लेकिन उसने कहा, इससे मेरी समझ में नहीं आता, आप मुझे कहीं और भेज दें।
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झेन-परंपरा में ऐसा होता है कि शिष्य मांग सकता है कि मुझे कहीं भेज दें, जहां में सीख सकूं। तो गुरु ने कहा, तू जा, पास में एक सराय है कुछ मील दूर, वहां तू रुक जा, चौबीस घंटे ठहरना और सराय का मालिक तुझे काफी बोध देगा।
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वह गया। वह बड़ा हैरान हुआ। इतने बड़े गुरु के पास तो बोध नहीं हुआ और सराय के मालिक के पास बोध होगा ! धर्मशाला का रखवाला ! बेमन से गया। और वहां जाकर तो देखी उसकी शक्ल-सूरत रखवाले की तो और हैरान हो गया कि इससे क्या बोध होने वाला है ! लेकिन अब चौबीस घंटे तो रहना था। और गुरु ने कहा था कि देखते रहना, क्योंकि वह धर्मशाला का मालिक शायद कुछ कहे न कहे, मगर देखते रहना, गौर से जांच करना।
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तो उसने देखा कि दिनभर वह धूल ही झाड़ता रहा, वह धर्मशाला का मालिक; कोई यात्री गया, कोई आया, नया कमरा, पुराना, वह धूल झाड़ता रहा दिनभर। शाम को बर्तन साफ करता रहा। रात ग्यारह-बारह बजे तक यह देखता रहा, वह बर्तन ही साफ कर रहा था, फिर सो गया। सुबह जब उठा पांच बजे, तो भागा कि देखें वह क्या कर रहा है; वह फिर बर्तन साफ कर रहा था। साफ किए ही बर्तन साफ कर रहा था। रात साफ करके रखकर सो गया था।
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इसने पूछा कि महाराज, और सब तो ठीक है, और ज्यादा ज्ञान की मुझे आपसे अपेक्षा भी नहीं, इतना तो मुझे बता दें कि साफ किए बर्तन अब किसलिए साफ कर रहे हैं ? उसने कहा, रातभर भी बर्तन रखें रहें तो धूल जम जाती है। उपयोग करने से ही धूल नहीं जमती, रखे रहने से भी धूल जम जाती है। समय के बीतने से धूल जम जाती है।
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यह तो वापस चला आया। गुरु से कहा, वहां क्या सीखने में रखा है, वह आदमी तो हद्द पागल है। वह तो बर्तनों को घिसता ही रहता है, रात बारह बजे तक घिसता रहा, फिर सुबह पांच बजे से–और घिसे-घिसायों को घिसने लगा। उसके गुरु ने कहा, यही तू कर, नासमझ ! इसीलिए तुझे वहां भेजा था। रात भी घिस, घिसते-घिसते ही सो जा, और सुबह उठते ही से फिर घिस। क्योंकि रात भी सपनों के कारण धूल जम जाती है। समय के बीतते ही धूल जम जाती है।
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विचार और स्वप्न हमारे भीतर के मन की धूल हैं।
ओशो

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