रविवार, 24 दिसंबर 2023

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*जीवित माटी मिल रहै, सांई सनमुख होइ ।*
*दादू पहली मर रहै, पीछे तो सब कोइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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जीवत माटी मिल रहै, सांई सनमुख होइ ।
दादू पहली मरि रहै, पीछे तो सब कोइ ॥
पीछे तो सभी मरते हैं।
दादू पहली मर रहै, पीछे तो सब कोई॥
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सभी मरते हैं पीछे तो। धार्मिक पहले ही मर जाता है। वह मृत्यु को इतना कष्ट भी नहीं देता। वह अपने को पहले ही समेट लेता है। वह अपने को बढ़ाता ही नहीं। वह अपने को बनाता ही नहीं। वह अपने को सम्हालता ही नहीं। वह एक भीतर शून्य को जीने लगता है।
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देह होती है, मन नहीं होता। श्वास चलती है, चलाने वाला नहीं होता। उठना-बैठना होता है, भीतर का कर्ता खो जाता है। ये सारे कृत्य निसर्ग से चलते हैं। इनको चलाने की कोई जरूरत नहीं। तुम श्वास थोड़े ही लेते हो, श्वास चलती है। तुम कुछ भी न करो तो चलती है। तुम गहरे सोए रहो तो चलती है। तुम मूर्च्छित पड़े हो तो चलती है। शराब पी ली है, नाली में गिर गए हो, तो चलती है। चलाने में तुम्हारा कोई हाथ नहीं है।
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तो जो अपने आप चलता रहता है वह चलता रहता है। भूख लगती है, प्यास लगती है। झेन फकीरों ने बहुत बार कहा है। जब भी उनसे पूछा गया कि निर्वाण को पा लेने के बाद, समाधिस्थ हो जाने के बाद अब आप क्या करते हैं? तो वे कहते हैं, भूख लगती है, तब खाना खा लेते हैं। प्यास लगती है, तब पानी पी लेते हैं। नींद आती है, तब सो जाते हैं। और कुछ भी नहीं करते। अपनी तरफ से कुछ नहीं करते। जो हो रहा है निसर्ग से, वह ठीक है।
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दादू पहली मर रहै, पीछे तो सब कोई॥
यही धार्मिक-अधार्मिक का फर्क है। अधार्मिक, जब मौत आती है तब भी मरने को राजी नहीं होता। लड़ता है; सब तरह की चेष्टा करता है, और थोड़ी देर रुक जाए। नाव भी लग गई किनारे पर, तब भी वह किनारे को जकड़े रहता है। उसे जबरदस्ती ले जाना पड़ता है।
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यमदूत मृत्यु के कारण नहीं आते, यमदूत तुम्हारी पकड़ के कारण आते हैं। सारे संसार में कथाएं हैं इस बात की कि मरते वक्त परमात्मा को भेजने पड़ते हैं लोग --बड़े दुष्ट प्रकृति के लोग, बड़े शक्तिशाली पहलवान जैसे, भैंसों पर सवार होकर। वह कोई मृत्यु के कारण नहीं; वह तुम्हारी जबरदस्ती है रुके रहने की।
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तुम अगर जाने को राजी हो तो बात ही अलग हो जाती है। यमदूत आते ही नहीं। अगर बहुत गहरे में तुम देख पाओ तो समझ लोगे कि मृत्यु भी नहीं आती। क्योंकि वह तो तुम काम पहले ही निपटा चुके। वह मरने का काम तो हो ही गया। तुम एक हवा के झोंके की तरह चले जाते हो। कोई ले जाता नहीं।
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बुद्ध का एक नाम है तथागत। तथागत का अर्थ होता है, हवा के झोंके की तरह जो चला गया। पता भी न चला कब आया, पता भी न चला कब चला गया। जिसके जाने में जरा भी शोरगुल न था; जिसका जाना ऐसे हो गया-चुपचाप; कानों-कान खबर न पड़ी। कोई यमदूतों ने बुद्ध को नहीं छुड़ाया संसार से, उस संसार को पहले ही छोड़ दिया था।
OSHO

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