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*दादू कोटि अचारिन एक विचारी, तऊ न सरभर होइ ।*
*आचारी सब जग भर्या, विचारी विरला कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधू का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*विजय आदि भक्तों के संग में*~
कुछ देर बाद श्रीयुत विजयकृष्ण गोस्वामी श्रीरामकृष्णदेव के दर्शन करने के लिए आये । साथ कई ब्राह्म भक्त भी हैं । विजयकृष्ण बहुत दिनों तक ढाके में थे । इधर पश्चिम के बहुत से तीर्थों में भ्रमण करके अभी थोड़े ही दिन हुए कलकत्ता आये हैं ।
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आते ही उन्होंने श्रीरामकृष्ण को भूमिष्ठ हो प्रणाम किया । बहुतसे लोग उपस्थित हैं, - नरेन्द्र, महिमाचरण चक्रवर्ती, नवगोपाल, भूपति, लाटू, मास्टर, छोटे नरेन्द्र आदि बहुत से भक्त ।
महिमा चक्रवर्ती (विजय से) - महाशय, आप तीर्थ कर आये, बहुत से देश देखकर आये, अब कहिये, आपने क्या क्या देखा ।
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विजय - क्या कहूँ ? मैं अनुभव कर रहा हूँ कि जहाँ अभी मैं बैठा हुआ हूँ, यहीं सब कुछ है । इधर-उधर भटकना व्यर्थ है । और जहाँ जहाँ मैं गया, कहीं इनका(श्रीरामकृष्ण का) एक आना, कहीं दो आने या चार आने अंश ही पाया, परन्तु पूरे सोलह आने तो केवल यहीं पा रहा हूँ ।
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महिमा - आप ठीक कहते हैं । फिर, ये ही चक्कर लगवाते हैं और ये ही बैठाते हैं ।
श्रीरामकृष्ण - (नरेन्द्र से) - देख, विजय की कैसी अवस्था हो गयी है ! लक्षण सब बदल गये हैं, मानो उबाला हुआ है । मैं परमहंस की गरदन और कपाल देखकर बतला सकता हूँ कि वह परमहंस है या नहीं ।
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महिमा - महाराज, क्या आपका भोजन घट गया है ?
विजय - हाँ, शायद घट गया है । (श्रीरामकृष्ण से) आपकी पीड़ा का हाल पाकर देखने के लिए आया हूँ । और फिर ढाके में –
श्रीरामकृष्ण – क्या ?
विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया । कुछ देर चुप हो रहे ।
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विजय - अगर अपने आप को वे(श्रीरामकृष्ण) खुद न पकड़वा दें तो पकड़ना मुश्किल है । यहीं सोलहों आना(प्रकाश) है ।
श्रीरामकृष्ण - केदार ने कहा, 'दूसरी जगह खाने को नहीं मिलता, परन्तु यहाँ आते ही पेट भर जाता है ।'
महिमा - पेट भरना ही नहीं - इतना मिलता है कि पेट में समाता नहीं - बाहर गिर जाता है !
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विजय - (हाथ जोड़कर, श्रीरामकृष्ण से) - आप कौन हैं, यह मैं समझ गया, अब कहना न होगा ।
श्रीरामकृष्ण - (भावस्थ) - अगर ऐसा है तो यही सही ।
विजय ने कहा, 'मैं समझा ।' यह कहकर श्रीरामकृष्ण के पैर पर गिर पड़े और उनके चरणों को अपनी छाती से लगा लिया ।
(क्रमशः)
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