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*कोई नूर पिछाणैं रे, कोई तेज कों जाणैं रे,*
*कोई ज्योति बखाणैं रे ॥७॥*
*कोई साहिब जैसा रे, कोई सांई तैसा रे,*
*कोई दादू ऐसा रे ॥८॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. १६३)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*संन्यासी भक्त*
*छप्पय-*
*भक्त भागवत धर्मरत, इते संन्यासी सब सिरै ॥*
*राम चन्द्रिका सुष्ठ, १ दमोदर तीरथ गाई ।*
*२ चितसुख टीका करी, सु भक्ति प्रधान बताई ॥*
*३ नृसिंह आरण्य चन्द्रोदय, हरि भक्ति बखानी ।*
*४ माधव ५ मधुसूदन सरस्वती गीता गानी ॥*
*६ जगदानन्द ७ प्रबोधानन्द, ८ रामभद्र भव-जल तिरे ।*
भक्त भागवत धर्मरत, इते संन्यासी सब सिरे ॥२७०॥*
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भागवत धर्म में रत इतने संन्यासी भक्त अपने अपने ग्रन्थों द्वारा भक्ति को पुष्टि करने में सर्व संन्यासियों में श्रेष्ठ हुये हैं -
१. दामोदर तीर्थजी ने श्रीरामार्चन चंद्रिका सुन्दर ग्रंथ लिखा है । उसमें श्रीरामपूजन की विधि का भली भांति भक्ति पूर्वक वर्णन किया है ।
२. चितसुखानन्दजी सरस्वती ने चित्सुखी गीता की टीका लिखी है । आपने गीता की टीका में भक्ति ही प्रधान बताई है ।
३. नृसिंहारण्यजी ने " श्रीहरिभक्तिचन्द्रोदय " ग्रंथ की रचना की है ।
४. माधवसरस्वतीजी ने भी अपने मोहविवेक ग्रन्थ में भक्ति को श्रेष्ठ बताया है ।
५. ईसा की लगभग सोलहवीं शताब्दी में बंगाल के फरीदपुर जिले के कोटाल पाड़ा ग्राम में प्रमोदनपुरन्दर नामक विद्वान् रहते थे । उनके तृतीय पुत्र कमलनयनजी ही संन्यास लेने पर मधुसूदन सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हुए थे । मधुसूदन सरस्वतीजी ने भक्तिरसायन आदि ग्रन्थों की रचना की है और गीता पर टीका भी लिखी हैं ।
६. जगदानन्दजी सब संतों की परिक्रमा करते थे । काशी में दो गुरु भाइयों में एक मर गया था दूसरा अति रो रहा था, आपने मृतक को जीवित करके उसे शान्ति दी थी ।
७. प्रबोधानन्दजी ।
८. रामभद्रजी एक नगर में ज्ञानोपदेश कर रहे थे, वहाँ से चातुर्मास करके दूसरे स्थान जाने लगे तब हरि ने ना किया, नहीं मान के चल दिये । मार्ग में एक नदी में बह गये तब हरि से प्रार्थना की । हरि ने निकाला और आप नदी में जा पड़े । फिर रामभद्रजी भी पीछे जा पड़े तब हरि फिर निकाल के प्रसन्न हो गये । प्रबोधानन्दजी व रामभद्रजी भी संसार सागर में विषय वासना रूप जल से पार हो गये हैं ।
(क्रमशः)
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