रविवार, 24 दिसंबर 2023

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*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
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*दादू पख काहू के ना मिलैं,*
*निष्कामी निर्पख साध ।*
*एक भरोसे राम के, खेलैं खेल अगाध ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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*छाड़िकै पठान-कुल रामनाम कीन्हों पाठ,*
*भजन प्रताप सूं वाजिंद बाजी जीत्यो है।*
*हिरणी हनन उर डर भयो भयकारी,*
*तोरे हैं कवांणतीर चाणक दियो शरीर,*
*सीलभाव उपज्यो दुसीलभाव बीत्यो है।*
*दादूजी दयाल गुरु अंतर उदीत्यो है।*
*राघो रति रात दिन देह दिल मालिक सूं,*
*खालिक सूं खेल्यो जैसे खेलण की रीत्यो है।*
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वाजिद की जिंदगी में क्रांति ही हुई ! प्रभु का स्मरण आया, जीवन की झलक को देखकर। जीवन याद दिला गया महाजीवन की। छोटा-सा सौंदर्य का कण, प्यास भर गया और सौंदर्य की। जरा-सी बूंद, सन्नाटा, उस घड़ी में हरिण की छलांग, हाथ का रुक जाना, हृदय का ठहर जाना, विचार का बंद हो जाना-थोड़ा-सा स्वाद लगा समाधि का ! फिर गुरु की तलाश में निकले। हिंदू से कुछ लेना-देना नहीं था।
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दादू दयाल कोई हिंदू थोड़े ही हैं। इस ऊंचाई के लोग हिंदू- मुसलमान थोड़े ही होते हैं ! हिंदू-मुसलमान होना तो बड़ी नीचाइयों की बातें हैं, बाजार की बातें हैं। यह तो संयोग कीबात है कि दादू दयाल हिंदू घर में पैदा हुए थे, बिलकुल संयोग की बात है। खोज में निकले थे वाजिद, बहुतों के पास गए, पांडित्य देखा, ज्ञान की बातें सुनीं, मगर जीवंत जलती हुए रोशनी नहीं देखी।
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शास्त्र तो सुना, सत्संग न हो सका। आंखों में आंखें डालकर देखीं, मगर वहां भी विचारों की भीड़ ही देखी; शांत सन्नाटा, संगीत, नाद वहां से उतरता न आया। बैठे पास बहुतों के, लेकिन खाली गए, खाली लौटे। दादू दयाल को हिंदू समझकर थोड़े ही गुरु बना लिया था; गुरु थे, इसलिए गुरु बना लिया था। इस बात को ख्याल रखना, वाजिद कुछ हिंदू नहीं हो गए हैं ! 
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हिंदू-मुसलमान की बात ही नहीं है यह। सोया आदमी जाग गया, इसमें हिंदू-मुसलमान की क्या बात है ? खोया आदमी रास्ते पर आ गया, इसमें हिंदू-मुसलमान की क्या बात है ? हिंदू भी खोए हैं, मुसलमान भी खोए हैं; हिंदू भी सोए हैं, मुसलमान भी सोए हैं। जो जाग गया, वह तो तीसरे ही ढंग का आदमी है; उसको किसी संप्रदाय में तुम न रख सकोगे, वह सांप्रदायिक नहीं होता है।
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यहां अड़चन आ जाती है। कोई सिक्ख आकर संन्यास ले लेता है, तो बस उसको सताने लगते हैं लोग, उसके संप्रदाय के लोग सताने लगते हैं कि अब तुम संन्यासी हो गए, अब तुम सिक्ख न रहे ! सच बात यह है कि वह पहली दफा सिक्ख हुआ ! सिक्ख का अर्थ होता है-शिष्य; शिष्य का ही रूप है सिक्ख। पहली दफा शिष्य हुआ, और तुम कहते हो सिक्ख न रहे ! अब तक सिक्ख नहीं था, अब हुआ।
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अब तक सुनी-सुनी बातें थीं, अब गुरु से मिलना हुआ। और गुरु कुछ बंधा थोड़े ही है-हिंदू में, मुसलमान में, ईसाई, जैन में नानक सिक्ख थोड़े ही हैं, न हिंदू हैं, न मुसलमान हैं; जागे पुरुष हैं। जब किसी जाग्रत पुरुष से संबंध हो जाएगा, तो तुम शिष्य हुए-और तभी तुम हिंदू हुए, और तभी तुम मुसलमान हुए। सदगुरु तुम्हें धर्म से जोड़ देता है, संप्रदायों से तोड़ देता है। 
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मगर राघोदास सांप्रदायिक वृत्ति के रहे होंगे, खुश हुए होंगे।
छाड़िकै पठान-कुल रामनाम कीन्हों पाठ।
इन्हें बड़ा रस आया होगा कि रामनाम का पाठ किया। देखो, राम से तरे ! कुरान पढ़ते रहे, तब न तरे। दोहराते रहे आयतें, तब न तरे- अब तरे ! राम हैं असली तारणहार !
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तोरे हैं कवांणतीर चाणक दियो शरीर,
दादूजी दयाल गुरु अंतर उदीत्यो है।
और अब भीतर गुरु का उदय हो रहा है। बाहर गुरु मिल जाए, तो भीतर गुरु का उदय शुरू हो जाता है। बाहर का गुरु भीतर के गुरु को सजग करने लगता है। बाहर के गुरु की मौजूदगी भीतर सोए गुरु को जगाने लगती है। गुरु अंतर उदीत्यो है-यह बात ठीक है।

ओशो

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