सोमवार, 1 जनवरी 2024

*३९. बिनती कौ अंग ८९/९२*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग ८९/९२*
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कहि जगजीवन रांमजी, अम्रित बरषौ आइ ।
अम्रित रस हरि जिमि करौ, प्रेम सुधा रस पाइ ॥८९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आप आकर अमृत वर्षा करें आप हमें प्रेमामृत रस वैसे ही पिलायें जैसे हरि अमृत रस बरसाया है ।
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कहि जगजीवन रांमजी, गरजि३ भरौ सब ताल४ ।
सहज सुन्नि की व्रिषा५ हरि, कदै न व्यापै काल ॥९०॥
(३. गरजि=मेघगर्जना करते हुए) (४. ताल=तालाब, सरोवर) (५. व्रिषा=वर्षा)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आप मेघों की भांति गर्जन कर इस प्रकार बरसें कि हमारा सारे अधूरेपन के ताल भर जाये आप सहज शून्य की वर्षा करें । अर्थात हम लिप्त न रहें और कोइ काल न व्यापे ।
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कहि जगजीवन रांमजी, संधि संधि करि संधि ।
टूटा फूटा जोड़ि हरि, अंग मंहि राखौ बंदि ॥९१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु सब को जोड़ जोड़ कर आपस में मिलाये रखो हमारी तोड़फोड़ जानकर आप जोडकर सुधार कर अपना लें ।
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क्रिपा तुम्हारी सौं सकल, कारिज आवै रासि६ ।
जगजीवन सुखिया रहै, प्रांणी प्रीतम पासि ॥९२॥
(६. रासि=पूर्ण होते हुए इकट्ठा होना)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आपकी कृपा से ही सब कार्य पूर्ण होते हैं । संत कहते हैं कि सभी जीव परमात्मा के पास ही सुखी है ।
(क्रमशः)

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