गुरुवार, 25 जनवरी 2024

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*दादू सांई कारण मांस का, लोही पानी होइ ।*
*सूखे आटा अस्थि का, दादू पावै सोइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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सुन्दर बिरहनी मरि रही, कहूं न पइए जीव।
अमृतपान कराइकै, फेर जिवावै पीव॥
आ जाओ, सुंदर कहते हैं। मैं तो मर रहा हूं, कहीं ऐसा न हो कि मैं मर ही जाऊं और तुम्हारे आने में देर हो जाए; कि तुम आओ जब मरीज मर ही जाए।
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लेकिन परमात्मा आता ही तब है जब तुम मर ही जाते हो, इसके पहले नहीं आ सकता! जब तक तुम्हारा अहंकार थोड़ा सा भी जीवित है तब तक बाधा है। तुम्हारी मृत्यु में ही उसका आगमन है। तुम्हारे मिटने में ही उसका अवतरण है। तुम मिटो कि वह आया। तुम खाली कर दो अपने भीतर के भवन को कि वह भर देगा। तुम्हारी शून्यता में उसकी पूर्णता उतरती है।
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शून्य होना शर्त है; जो उसे पूरी कर देता है, जब पूरी कर देता है, तभी परमात्मा उतर आता है। मगर ये काम बुद्धि के नहीं हैं, ये काम तो दीवानगी के हैं।
हो गया जब इश्क हम-आगोशे-तूफाने-शबाब।
अक्ल बैठी रह गयी साहिल पे शरमाई हुई॥
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साधारण जीवन में भी जिसको तुम प्रेम कहते हो, वह भी बुद्धि से नहीं चलता। यह तो असाधारण प्रेम है! साधारण जीवन में भी... हो गया जब इश्क हम-आगोशे-तूफाने-शबाब। जब यौवन के तूफान पर प्रेम सवार हो जाता है... अक्ल बैठी रह गयी साहिल पे शरमाई हुई॥
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इससे भी बड़ी हिम्मत चाहिए। लोग तो साधारण प्रेम करना भी भूल गए हैं, क्योंकि लोग दांव लगाना ही भूल गए हैं। अब मजनू कहां होते हैं ? अब फरिहाद कहां होते हैं ? अब तो लोगों ने साधारण प्रेम का दांव लगाना भी छोड़ दिया है। दुनिया खाली हो गयी है। और इस परमात्मा की खोज में तो मजनूओं का ही काम है, फरिहादों का ही काम है। वे जो अपने को सब तरह गंवाने को राजी हैं !
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प्रेम हो तो ही पता चले। परमात्मा तो सदा मौजूद है और पास ही मौजूद है। दो कोस भी नहीं, मैं तुमसे कहता हूं। उसी में तुम श्वास ले रहे हो। उसी में तुम्हारा हृदय धड़क रहा है। मगर प्रेम हो तो पता चले। जैसे सोने को कसते हैं न कसौटी पर, कसो तो पता चले। ऐसे प्रेम की कसौटी पर ही परमात्मा की मौजूदगी अंकित होती है, नहीं तो अंकित नहीं होती।
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कहीं मजाके-नजर को सही मिल न सका
कभी चमन से भी कहकशां से गुजरा हूं
तेरे करीब से गुजरा हूं इस तरह कि मुझे
खबर भी हो न सकी कि मैं कहां से गुजरा हूं !
पता भी न चल सका ! हम रोज ही उसके करीब से गुजर रहे हैं। हम उसी में जी रहे हैं, जैसे मछली सागर में जी रही है। हम उसी में पैदा हुए हैं, उसी में लीन हो जाएंगे। लेकिन प्रेम तड़फे तो पहचान हो। विरह जगे तो अनुभूति हो।
ओशो

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