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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग १५७/१६०*
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प्यावहु तो पीऊँ अम्रित, आतम पावै पोष ।
कहि जगजीवन रांमजी, भगति हरि, दूर होंहि दुख दोष ॥१५७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आप नाम स्मरण का अमृत पान कराइये जिससे आत्मा पोषित हो । आपकी भक्ति से सभी दुःख व दोष दूर हो जायेंगे ।
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चूक१ पड़ी सो बकसिये, गुनहगार२ भरभ्रष्ट३ ।
कहि जगजीवन एक तुम, आदि हमारे इष्ट ॥१५८॥
{१. चूकि=भूल(प्रमाद)} (२. गुनहगार=अपराधी)
(३. भरभ्रष्ट=सब से हीन(तुच्छ=गया गुजरा)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जो प्रमादवश भूल हुई है उसे क्षमा करें । हम तो सबसे तुच्छ सेवक हैं हे प्रभु आप ही हमारे इष्टदेव हैं ।
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रदम४ तिहाड़ो रांमजी, सरनैं लीजै राखि ।
कहि जगजीवन जीव सब, तुम क्रित जीवै भाखि ॥१५९॥
{४. रदम=प्रेम}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आपका प्रेम है आप हमें अपनी शरण में रख लीजिये । सब जीव आपके रखने से ही रहते हैं ।
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जिहिं तुम रीझौ रस रहै, तन मन लहै विसरांम ।
कहि जगजीवन क्रिपा करि, सो मति५ दीजै रांम ॥१६०॥
{५. मति=बुद्धि(समझ)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जैसे आप प्रसन्न रहें उसी में हमें संतोष है । ऐसी बुद्धि दीजिये कि हम आपकी कृपा को जान सकें ।
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इति बिनती कौ अंग संपूर्ण ॥३९॥
(क्रमशः)

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