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*अर्थ अनुपम आप है, और अनर्थ भाई ।*
*दादू ऐसी जानकर, तासौं ल्यों लाई॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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अर्थ अनुपम आप है, और अनर्थ भाई ।
दादू ऐसी जानकर, तासौं ल्यों लाई॥
अर्थ अनूपम आप है--और दादू कहते हैं मत पूछो, कि उस घड़ी में कैसे अर्थ के फूल खिलेंगे ? मत पूछो, कि कैसी अर्थ की सुवास उठेगी ?
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अर्थ अनुपम आप है। वह अर्थ अनुपम है। उसकी कोई उपमा नहीं दी जा सकती इस संसार में वैसा कुछ भी नहीं है, जिससे इशारा किया जा सके। इस संसार के सभी इशारे बड़े फीके हैं। इस संसार के इशारों से भूल हो जाएगी। अर्थ अनुपम--अद्वितीय है, वह बेजोड़ है। वैसा कुछ भी नहीं है।
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अर्थ अनुपम आप है, बस, वह अपने जैसा आप है।
और अनर्थ भाई--और उसके अतिरिक्त जो भी है, सब अर्थहीन है।
दादू ऐसी जानि करि तासौ ल्यो लाइ। और ऐसा जानकर उसमें ही लौ को लगा दो। दादू कहते हैं, मैंने ऐसा जानकर उसमें ही लौ लगा दी। दादू ऐसी जानि करि ता सौ ल्यों लगाइ। उसमें ही लौ लगा दी।
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लौ शब्द समझ लेने जैसा है। दिए में लौ होती है। तुमने कभी खयाल किया, कि दिए की लौ, तुम कैसा भी दिए को रखो, वह सदा ऊपर की तरफ जाती है। दिए को तिरछा रख दो, कोई फर्क नहीं पड़ता। लौ तिरछी नहीं होती। दिए को तुम उल्टा भी कर दो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। लौ फिर भी ऊपर की तरफ ही भागी चली जाती है। पानी का स्वभाव है। नीचे की तरफ जाना; अग्नि का स्वभाव है ऊपर की तरफ जाना।
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लौ का प्रतीक कहता है, तुम्हारी चेतना जब सतत ऊपर की तरफ जाने लगे, शरीर की कोई भी अवस्था हो--सुख की हो कि दुख की हो, पीड़ा की हो, जीवन की हो, कि मृत्यु की हो; जवानी हो, कि बुढ़ापा; सौंदर्य हो, कि कुरूपता; सफलता हो कि असफलता; कोई भी अवस्था में रखा हो दिया, इससे कोई फर्क न पड़े। लौ सदा परमात्मा की तरफ जाती रहे, ऊपर की तरफ जाती रहे। दादू ऐसी जानि करि तासों ल्यौ लाई।
ओशो

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