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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३९७)*
*राग भैरूं ॥२४॥**(गायन समय प्रातः काल)*
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*३९७. निन्दा । त्रिताल*
*निन्दत है सब लोक विचारा,*
*हमको भावै राम पियारा ॥टेक॥*
*निस्संशय निर्दोष लगावै,*
*तातैं मोको अचरज आवै ॥१॥*
*दुविधा द्वै पख रहिता जे,*
*तासन कहत गये रे ये ॥२॥*
*निर्बैरी निहकामी साध,*
*ता सिर देत बहुत अपराध ॥३॥*
*लोहा कंचन एक समान,*
*तासन कहत करत अभिमान ॥४॥*
*निन्दा औ स्तुति एकै तोलै,*
*तासन कहैं अपवाद हि बोलै ॥५॥*
*दादू निन्दा ताको भावै,*
*जाकै हिरदै राम न आवै ॥६॥*
सारे मानव मेरी निन्दा करते हैं । निन्दा करते हैं तो भले ही करो । मुझे तो राम ही प्रिय हैं, अतः मैं निंदा करने से उनके प्रेम को और भक्ति को नहीं छोड़ सकता । निन्दक मेरी क्या निन्दा करते हैं । वे तो हरिभक्ति की निन्दा करते हैं ।
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यह तो उनका कर्तव्यकर्म है कि जो निर्दोष व्यक्ति है, उस पर झूंठा दोष लगा देना । अतः मुझे बड़ा ही आश्चर्य हो रहा है । जो ज्ञानी महात्मा दोनों पक्षों से रहित निष्पक्ष हैं । उनको भी वे निन्दक कहते हैं कि – ये दोनों लोकों से भ्रष्ट हो गये हैं । निन्दक लोग जो निर्वेर संत हैं उन पर भी दोष लगाते रहते हैं ।
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जिनकी दृष्टि में सोना, पत्थर एक सा हैं, उन लोगों को निन्दक कहते हैं कि ये अपने त्याग का अभिमान दिखलाते हैं । जो निन्दा स्तुति में समान हैं ऐसे पुरुषों पर निंदक दोष लगाते हुए कहते हैं कि ये साधु नहीं किन्तु दाम्भिक(पाखण्डी) हैं, ऐसा कहते रहते हैं । अतः जो अज्ञानी हैं वे ही निन्दा किया करते हैं । जिनको हरि भक्ति प्यारी नहीं है । ज्ञानी पुरुष किसी की भी निंदा नहीं करते ।
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पद्मपुराण स्वर्गखण्ड में -
अपनी प्रशंसा न करे । दूसरे की निंदा त्याग दे । वेदनिन्दा देवनिन्दा को त्याग दे । जो गुरु देवता अथवा वेद का विस्तार करने वाले इतिहास पुराण की निंदा करता है वह मनुष्य सौ करोड़ कल्प से भी अधिक काल तक रौरव नरक में पकाया जाता है ।
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जहां इनकी निन्दा होती हैं वहाँ चुप रहे । कुछ भी उत्तर न दें । कान बन्द करके वहाँ से चला जाय । निन्दा करने वाले की तरफ दृष्टि भी न डाले । विद्वान पुरुष किसी दूसरे की निन्दा न करे । अच्छे पुरुषों के साथ विवाद न करें । पापियों के पाप की चर्चा न करें ।
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जिन पर झूठा कलंक लगाया जाता है उन मनुष्यों के रोने से जो आँसू गिरते हैं, वे मिथ्या कलंक लगाने वालों के पुत्रों और पशुओं का विनाश कर डालते हैं । ब्रह्मह्त्या, सुरापान, चोरी और गुरु की पत्नी से व्यभिचार करना आदि पापों से शुद्ध होने के लिये वृद्ध पुरुषों ने उपाय देखा है, किन्तु मिथ्या कलंक लगाने वाले मनुष्य की शुद्धि का कोई उपाय नहीं देखा गया है ।
(क्रमशः)

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