शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

*प्रकट्यो परमात्म परस हरि*

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*साधु शब्द सुख वर्षहि, शीतल होइ शरीर ।*
*दादू अन्तर आत्मा, पीवे हरि जल नीर ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*श्रीभट्टजी*
*छप्पय-*
*प्रकट्यो परमात्म परस हरि, भक्ति करन श्रीभट सुभट ॥*
*संतन को सुख करन, हरन संदेह मधुर स्वर ।*
*सुन्दर भाव सुशील, देख सु प्रसन्न प्रेम उर ॥*
*समर्थ सुकवि उदार, हेत नित भजन करावत ।*
*उदय भयो शशि सुयश, तासु तम ताप नशावत ॥*
*शिर राखे राधारवन, दूर किये दुविधा कपट ।*
*प्रकट्यो परमात्म परस हरि, भक्ति करन श्रीभट सुभट ॥२७७॥*
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काम क्रोधादि शत्रुओं को नष्ट करने में वीर श्रीभट्टजी परमात्मा का साक्षात्कार करके हरि भक्ति का प्रचार करने के लिये ही प्रकट हुये थे ।
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आप संतों के लिये सुख की व्यवस्था करने वाले थे तथा साधकों के संशय को मधुर वचनों से हरते थे । सुशील और सुन्दर स्वभाव वाले थे। समर्थ सुकवि और उदार थे। नित्य सस्नेह' सबसे भजन करवाया करते थे ।
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उस समय संसार में श्रीभट्टजी का सुयश रूप चन्द्रमा उदय होकर मनुष्यों के अज्ञानरूप अंधकार और दुःखों को नष्ट कर रहा था । आपने अपने शिर पर राधारमण श्रीकृष्ण भगवान् को ही इष्टदेव रूप से धारण किया था । द्वैतभाव और कपट को हृदय से दूर कर दिया था । उक्त विशेषताओं से युक्त श्रीभट्टजी श्रेष्ठ भक्त बन गये थे । आप केशव काश्मीरी भट्टजी के शिष्य थे ॥२७७॥
(क्रमशः)

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