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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*३९. बिनती कौ अंग १४९/१५२*
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मति कोई दूखै रांमजी, एह बीनती नाथ ।
कहि जगजीवन क्रिपा करि, तुमही पकड़ॏ हाथ ॥१४९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आप ऐसी कृपा करें की कोइ भी दुखी न हो यह प्रार्थना है प्रभु आप ही कृपाकर सम्भालिये ।
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हूँ वारी तुम्ह ऊपरै, बलि बलि कीती रांम ।
कहि१ जगजीवन प्रगटिये, पुरवहु इच्छ्या काम१ ॥१५०॥
१-१. आप मुझको साक्षात् दर्शन देकर मेरी इच्छा पूर्ण कीजिये ।
संतजगजीवन ज कहते हैं कि मैं आप पर बलिहारी हूँ प्रभु बार बार वारणे आप पर । संत कहते हैं कि अब दर्शन देकर मेरी इच्छा पूर्ण कीजिए ।
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तुन सौं एही बीनती, हमकौं दीजै नांम ।
कहि जगजीवन क्रिपा हरि, भगति करैं निज ठांम ॥१५१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु आपसे यह ही प्रार्थना है कि हमें अपना नाम दान दीजिये । और हम आपकी कृपा से आपकी भक्ति करते रहें ।
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थोड़ा रांम गुनह घणां, क्यों करि बोलौ रांम ।
कहि जगजीवन डरत रहूँ, लेत तुम्हारा नांम ॥१५२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु हमारे अंतर में राम तत्व तो बहुत कम हैं और अपराध बहुत है । हम स्मरण कैसे करें ? हमारे पाप वो करने ही नहीं देते हैं । मैं तो अपने पापों के भय से आपका स्मरण करता भी डरता हूँ ।
(क्रमशः)

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