सोमवार, 29 अप्रैल 2024

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*धनि धनि साहिब तू बड़ा, कौन अनुपम रीत ।*
*सकल लोक सिर सांइयां, ह्वै कर रह्या अतीत ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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ऐसा हुआ। एक ईसाई फकीर औरत हुई–सेंट थेरेसा। बड़ी बहुमूल्य स्त्री थी। उसने एक दिन गांव के चर्च में जा कर घोषणा की कि मैं एक बहुत बड़ा परमात्मा का मंदिर बनाना चाहती हूं। गांव छोटा था; चर्च भी बहुत छोटा था। लोगों ने कहा, हम कहां से पैसा इकट्ठा करेंगे ? कहां से बड़ा मंदिर बनाएंगे यहां ? कौन देगा ? कहां से आएगा ?
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एक आदमी ने उससे पूछा कि थेरेसा, यह तो ठीक है कि तुम बनाना चाहती हो, हम भी चाहेंगे। लेकिन तुम्हारे पास पैसे कितने हैं ? थेरेसा ने अपने खीसे में हाथ डाला; दो पैसे थे उसके पास। उसने कहा कि दो मेरे पास हैं, इनसे काम शुरुआत का हो जाएगा। तो लोग हंसने लगे। लोगों ने कहा कि हमको पहले ही शक था कि तेरा दिमाग खराब है। दो पैसे से महान मंदिर बनाने की योजना बना रही है ? करोड़ों रुपयों की जरूरत पड़ेगी !
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सेंट थेरेसा ने कहा कि तुम्हें ये दो दिखाई पड़ते हैं, यह तो ठीक है। मेरे पास दो हैं। लेकिन उसके पास ? वह भी मेरे साथ है। दो पैसा+परमात्मा, कितना होता है हिसाब ? उसने कहा। और दो पैसे तो सिर्फ शुरुआत के लिए हैं, आखिर में तो उसी को करना है। हम कर ही क्या सकते हैं ? हमारी शक्ति क्या है ? उसने कहा, दो ही पैसे की हमारी शक्ति है, बाकी तो उसी की है। और दो पैसे हमारे पास हैं। उतने तक हम जाएंगे, फिर उससे कहेंगे, अब तेरी मर्जी।
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और वह मंदिर बना। वह मंदिर आज भी खड़ा है। विराट मंदिर बना है। वह मंदिर तुम्हारी शक्ति से नहीं बनता। तुम्हारे पास तो दो ही पैसे हैं। उससे तो तुम कल्पना ही नहीं कर सकते बनाने की। क्या बनेगा ? तुम हो क्या ? तुमसे होगा क्या ? तुम क्या पा सकोगे ? बड़े मंदिर को बनाने चले हो! लेकिन दो पैसे+परमात्मा, तब अपार संपत्ति तुम्हारे पास है। फिर कोई हर्जा नहीं। फिर तुम जो भी बनाना चाहोगे, बनेगा। लेकिन तुम दो ही पैसा रहना।
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जैसे ही तुम निर्बल हुए, परम शक्ति का स्रोत उपलब्ध हो जाता है। जब तक तुम सबल हो, तब दो पैसे से ज्यादा तुम्हारी शक्ति नहीं। इसलिए नानक दोहरा रहे हैं, न इसमें शक्ति है, न उसमें शक्ति। वे तुमसे शक्ति छीन रहे हैं। इसलिए मैं कहता हूं, सदगुरु तुमसे छीन लेता है, तुम्हें देता नहीं। सदगुरु तुमसे छीन लेता है, तुम्हें निर्बल बना देता है, तुम्हें असहाय कर देता है।
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तुम्हें उस हालत में छोड़ देता है, जैसे मरुस्थल में कोई पड़ा हो और प्यासा हो, और जल के कोई स्रोत करीब न हों। उस क्षण जो प्यास प्रार्थना की तरह उठेगी, वहीं तुम पाओगे, निर्बल के बल राम ! वहीं तुम पाओगे कि परमात्मा उपलब्ध है। मरुस्थल से उठी प्यास जब तुम्हारे जीवन से उठेगी, उसी क्षण। जब तुम पूर्ण असहाय हो, तभी उस परम का सहारा मिलता है।
ओशो

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