रविवार, 28 अप्रैल 2024

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*दादू सचु बिन सांई ना मिलै, भावै भेष बनाइ ।*
*भावै करवत उर्ध्वमुख, भावै तीरथ जाइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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नानक कहते हैं, लेकिन विचार होगा कर्म का। वह परमात्मा सच्चा है और उसका दरबार भी सच्चा है। और ध्यान रखना कि तुम सच्चे हुए तो ही उसके दरबार में प्रवेश पा सकोगे। तुम किसे धोखा दे रहे हो ? तुम सारे संसार को धोखा दे सकते हो, लेकिन क्या तुम स्वयं को धोखा दे सकते हो ? तुम तो जानते ही हो कि तुम क्या हो !
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सारी दुनिया तुम्हें पूजे, कहे कि तुम साधु हो, लेकिन तुम तो भीतर जानते ही हो कि तुम कौन हो ? उस भीतर छिपे को कैसे धोखा दोगे ? वह जो तुम्हारा भीतर छिपा हुआ अस्तित्व है, वही तो परमात्मा है। परमात्मा के सामने तुम कैसे वंचना करोगे ? वहां तो तुम नग्न हो। वहां तो सब खुला है। वहां तो कुछ ढंका नहीं हो सकता।
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उस दरबार में तो सच्चे ही तुम हो सकोगे तो ही प्रवेश पा सकोगे। लोग पूछते हैं, परमात्मा कैसे पाएं ? लोगों को पूछना चाहिए, सच्चे कैसे हों ? परमात्मा को पाने की बात ही छोड़ देनी चाहिए। जैसे लोग पूछते हैं, परमात्मा दिखायी नहीं पड़ता। उन्हें पूछना चाहिए, मुझे परमात्मा क्यों दिखायी नहीं पड़ता ?
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झूठी आंखें उसे नहीं देख सकतीं। सत्य को देखना हो तो सच्ची आंखें चाहिए। सत्य को अनुभव करना हो तो सच्चा हृदय चाहिए। सत्य को पहचानना हो तो तुम्हें भी सच्चा होना पड़े। क्योंकि समान ही समान को पहचान सकता है। तुम अभी जहां खड़े हो, जैसे खड़े हो, बिलकुल झूठ हो।
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झूठ का मतलब इतना नहीं है कि तुम जो बोलते हो वह झूठ है। तुम्हारा होना ही झूठ है। तुम्हारे चेहरे झूठ हैं। तुम्हारा व्यवहार झूठ है। तुम कहते कुछ हो, तुम सोचते कुछ हो, तुम करते कुछ हो। तुम्हारी बात का, तुम्हारे होने का कोई भी भरोसा नहीं है। तुम्हें खुद ही भरोसा नहीं है कि तुम क्या कर रहे हो। क्या तुम यही करना चाहते हो ? तुम क्या कह रहे हो ? क्या तुम यही सोचते हो जो तुम कह रहे हो ?
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लेकिन तुम डरोगे बहुत। क्योंकि अगर तुम सच्चे होने लगे तो तुमने धर्मशाला में जो घर बनाया है, वह गिरने लगेगा। क्योंकि इस धर्मशाला में–धर्मशाला का अर्थ है, वह पड़ाव है, घर नहीं है–बड़े से बड़ा झूठ तो तुमने यह खड़ा किया है कि तुमने घर बना लिया है। अब तुम कागज की नाव में बैठे हो और यात्रा कर रहे हो। तुम यात्रा करोगे कैसे ? किनारे पर ही बैठे रहोगे। नाव को पानी में भी उतारना खतरनाक है। क्योंकि कागज की नाव है, उतरी कि डूबी। उतरी कि गली।
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लोग मेरे पास आते हैं। और वे कहते हैं कि अगर हम सच्चे हो जाएं तो जीवन बहुत मुश्किल हो जाएगा। हो ही जाएगा। क्योंकि झूठ से तुमने जीवन को बनाया है, इसलिए। शुरू में तो बहुत मुश्किल होगा। न बदलो तो भी मुश्किल है। कौन सा सुख तुमने जाना है ? कौन से आनंद का फूल तुम्हारे जीवन में खिला है ? कौन सी सुगंध आयी है ? क्या है कि जिसके कारण तुम कह सको कि जीना सार्थक हुआ ? कुछ भी तो दिखायी नहीं पड़ता।
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कठिन तो अभी भी है। लेकिन इस कठिनाई के तुम आदी हो गए हो। जब तुम सच में बदलने की कोशिश करोगे तो आदतें टूटेंगी। जिस आदमी से तुम्हें कुछ प्रेम नहीं है, उससे तुम कहते हो, आप आए, बड़ा सौभाग्य है। और भीतर सोचते हो कि इस दुष्ट का चेहरा कैसे दिखायी पड़ गया सुबह-सुबह ! आज का दिन खराब हो गया।
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अगर वह आदमी भी थोड़ा समझदार हो, थोड़ा सजग हो, तो वह तुम्हारे झूठ को देख लेगा। क्योंकि तुम कहो कुछ भी, तुम्हारी आंखें खबर देंगी। तुम्हारा चेहरा, तुम्हारा हाव-भाव प्रसन्नता प्रकट नहीं करेगा। तुम्हारे शब्द और होंगे, तुम्हारे ओंठ और होंगे। उन दोनों में कोई संगति न होगी।
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क्योंकि जब कोई आदमी सच ही प्रसन्न होता है, तो प्रसन्नता की बात कहता थोड़े ही है ! उसका रोआं-रोआं गदगद हो उठता है। जब कोई आदमी सच ही प्रसन्न होता है, तो उसको तुम पहचान सकते हो। लेकिन दूसरा भी सोया हुआ है। वह भी सोचता है कि तुम ठीक कह रहे हो। इसलिए तो खुशामद दुनिया में सफल होती है। सब झूठी है। और सुनने वाला भी अगर गौर से सुने तो समझेगा कि तुम बिलकुल गलत बात कह रहे हो। यह है ही नहीं।
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इंग्लैंड में कवि हुआ ईट्स। उसे नोबल प्राइज मिली। उसका स्वागत किया गया। वह बहुत सच्चा आदमी था। बहुत सरल आदमी था। उसके काव्य में भी वैसी सच्चाई है। जब उसका स्वागत किया गया तो स्वागत में तो जैसा होता है, लोग स्तुति करते हैं। जो सदा गाली देते थे, वे भी वहां खड़े हो कर स्तुति करते हैं। वह बड़ा हैरान हुआ। और उसे बड़ा संकोच होने लगा कि ये सब झूठी बातें मेरे संबंध में कही जा रही हैं। वह अपनी कुर्सी में सिकुड़ता गया–दो घंटे !
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जब स्तुति खतम हुई तो लोगों ने देखा कि वह कुर्सी में बिलकुल ऐसा दबा बैठा है कि जैसे अब उसके बर्दाश्त के बाहर है। उसे हिलाया सभापति ने और उससे कहा, आप सो तो नहीं गए हैं ? उसने कहा कि मैं सो नहीं गया हूं, लेकिन अगर मुझे यह पता होता तो मैं न आता। कुछ समझा नहीं सभापति।
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उसने खड़े हो कर घोषणा की कि पच्चीस हजार पौंड हमने पूरे मित्रों ने इकट्ठे किए हैं तुम्हारी भेंट के लिए। सोचा सभी ने कि वह बड़ा प्रसन्न होगा। उसने खड़े हो कर कहा कि अगर मुझे पता होता कि सिर्फ पच्चीस हजार पौंड के लिए इतना झूठ मुझे सुनना पड़ता तो मैं आता ही नहीं। सिर्फ पच्चीस हजार पौंड के लिए इतना झूठ ! महंगा सौदा रहा। दो घंटे !
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अगर तुम थोड़े सजग हो तो तुम्हारी कोई खुशामद न कर सकेगा। क्योंकि तुम पाओगे कि यह आदमी झूठ बोल रहा है। लेकिन तुम सजग नहीं हो, लोग झूठ बोल रहे हैं चारों तरफ, तुम्हारे खयाल में नहीं आता। तुम खुद झूठ बोल रहे हो, वह तक तुम्हारे खयाल में नहीं आता कि तुम क्या कह रहे हो ? और तब तुम फंसते हो बड़ी झंझटों में। किसी स्त्री से कह बैठते हो कि तू बड़ी सुंदर है। तुझसे मुझे बड़ा प्रेम है। फिर तुम उलझन में पड़े। तुम शायद झूठ ही कह रहे थे। अब यह सिलसिला शुरू हुआ। कल तुम पछताओगे।
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मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी ने कहा उससे एक दिन सुबह चाय पीते वक्त कि तुम ही मेरे पीछे पड़े थे। मैं तुम्हारे पीछे कभी नहीं पड़ी थी। और अब तुम्हारे ये ढंग ! अगर यही व्यवहार करना था तो मेरे पीछे क्यों पड़े थे ? मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, तू बिलकुल ठीक कह रही है। कभी किसी चूहादानी को चूहे को पकड़ने के लिए दौड़ते देखा है ? चूहा खुद ही फंसता है। यह बात सच है तेरा कहना कि हम खुद ही तेरे पीछे पड़े थे।
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स्त्रियां होशियार हैं इस मामले में। इसलिए कोई पति कभी उनको यह नहीं कह सकता कि तू मेरे पीछे पड़ी थी। कोई स्त्री ऐसी भूल नहीं करती। क्योंकि यह झंझट आज नहीं कल तो आने ही वाली है। हमेशा पुरुष ही फंसता है। क्योंकि स्त्री चुपचाप देखती है। वह सुनती है, वह राजी होती है, सिर हिलाती है। बाकी कभी इनिशिएटिव नहीं लेती। पहल नहीं करती। वह नसरुद्दीन ठीक कहता है कि कोई पिंजड़ा चूहे के पीछे नहीं भागता। स्त्रियां ज्यादा होशियार हैं। वे अपने आप ही…।
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जब नसरुद्दीन मरने लगा तो उसके बेटे ने पूछा कि कोई सूत्र जीवन के अनुभव के ? तो उसने कहा, तीन बातें सीखी हैं पूरे जीवन में। एक यह कि अगर लोग थोड़ा धैर्य रखें तो फल अपने आप ही पक जाते हैं और गिरते हैं। उनको तोड़ने के लिए झाड़ पर चढ़ने की कोई जरूरत नहीं। और दूसरी बात कि लोग अगर धैर्य रखें तो लोग अपने आप ही मर जाते हैं। उनको मारने के लिए युद्ध वगैरह करने की कोई जरूरत नहीं। और तीसरी बात, अगर लोग सच में धैर्य रखें तो स्त्रियां खुद पुरुषों के पीछे भागेंगी। उनके पीछे भागने की कोई जरूरत नहीं है। उसने कहा, ये तीन चीजें मैंने जीवन का सार अनुभव की हैं। लेकिन कोई सार से तो चलता नहीं। न कोई अनुभव से चलता है।
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क्या तुम बोलते हो ? क्या तुम करते हो ? होशपूर्वक करोगे तो तुम पाओगे निन्यानबे तो गिर गया। निन्यानबे प्रतिशत तो गिर गया। एक प्रतिशत बचेगा। वह एक प्रतिशत धर्मशाला के लिए काफी है। वह निन्यानबे प्रतिशत से घर बना रहे थे तुम। वह जो एक प्रतिशत बचेगा, वही संन्यासी का जीवन है। जो अनिवार्य है वही बचेगा।
ओशो

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