शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024

*बलराम के लिए चिन्ता । श्री हरिवल्लभ वसु*

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*दादू सोइ जन साधु सिद्ध सो, सोइ सकल सिरमौर ।*
*जिहिं के हिरदै हरि बसै, दूजा नाहीं और ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १३०~सर्वधर्म-समन्वय*
*(१)बलराम के लिए चिन्ता । श्री हरिवल्लभ वसु*
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श्रीरामकृष्ण श्यामपुकुरवाले मकान में चिकित्सा के लिए भक्तों के साथ ठहरे हुए हैं । आज शनिवार है, आश्विन की कृष्णा अष्टमी, ३१ अक्टूबर १८८५ । दिन के नौ बजे का समय होगा । यहाँ दिन-रात भक्तगण रहा करते हैं, श्रीरामकृष्ण की सेवा के लिए । अभी किसी ने संसार का त्याग नहीं किया है ।
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बलराम सपरिवार श्रीरामकृष्ण के सेवक हैं । उन्होंने जिस वंश में जन्म लिया है, वह बड़ा ही भक्त-वंश है । इनके पिता वृद्ध होकर अब श्रीवृन्दावन में अपने ही प्रतिष्ठित श्रीश्यामसुन्दर कुँज में रहा करते हैं । उनके चचेरे भाई श्रीयुत हरिवल्लभ बसु और घर के दूसरे सब लोग वैष्णव हैं ।
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हरिवल्लभ कटक के सब से बड़े वकील हैं । उन्होंने जब यह सुना कि बलराम श्रीरामकृष्णदेव के पास आया-जाया करते हैं और विशेषकर स्त्रियों को ले जाते हैं, तब वे बहुत नाराज हुए । उनसे मिलने पर बलराम ने कहा था, ‘तुम पहले एक बार उनके दर्शन करो, फिर जो जी में आये मुझे कहना ।’
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अतएव आज हरिवल्लभ आये हैं । उन्होंने श्रीरामकृष्ण को बड़े भक्तिभाव से प्रणाम किया ।
श्रीरामकृष्ण - किस तरह बीमारी अच्छी होगी ? आपकी राय में क्या यह कोई कठिन बीमारी है ?
हरिवल्लभ - जी, यह तो डाक्टर ही कह सकेंगे ।
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श्रीरामकृष्ण – स्त्रियाँ जब मेरे पैरों की धूलि लेती हैं तब यही सोचता हूँ कि भीतर तो वे ही हैं, वे उन्हीं को प्रणाम कर रही हैं । इसी दृष्टि से मैं देखता हूँ ।
हरिवल्लभ - आप साधु हैं, आपको सब लोग प्रणाम करेंगे, इसमें दोष क्या है ?
श्रीरामकृष्ण - हाँ, वह हो सकता था अगर ध्रुव, प्रह्लाद, नारद, कपिल, ये कोई होते; पर मैं क्या हूँ ? अच्छा आप फिर आइयेगा ।
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हरिवल्लभ - जी, हम लोग आप ही खिंचकर आयेंगे, आप कहते क्यों है ?
हरिवल्लभ बिदा होंगे, प्रणाम कर रहे हैं । पैरों की धूलि लेने जा रहे हैं, श्रीरामकृष्ण ने पैर हटा लिये । परन्तु हरिवल्लभ ने छोड़ा नहीं, जबरदस्ती उन्होंने पैरों की धूलि ली ।
(क्रमशः)

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