शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४११

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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४११ )*
*राग ललित ॥२५॥**(गायन समय प्रातः ३ से ६)*
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४११. (फारसी) साहिब सिफत । राज मृगांक ताल
महरवान, महरवान !
आब बाद खाक आतिश, आदम नीशान ॥टेक॥
शीश पाँव हाथ कीये, नैन कीये कान ।
मुख कीया जीव दीया, राजिक रहमान ॥१॥
मादर पिदर परदः पोश, सांई सुबहान ।
संग रहै दस्त गहै, साहिब सुलतान ॥२॥
या करीम या रहीम, दाना तूँ दीवान ।
पाक नूर है हजूर, दादू है हैरान ॥३॥
इति राग ललित संपूर्ण ॥२५॥
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ये श्रीहरि दया के सागर हैं । उन्होंने ही पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, आकाश आदि पञ्चभूत को प्राणियों के उपकार के लिये ही रचे हैं । अतः वे सब कार्य भगवान् की दयालुता को ही बतला रहे हैं ।
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उसी प्रभु ने हाथ, पैर, कान, मुख, नैन आदि प्राणियों के अंग बनाये हैं । वे भी सब परमेश्वर की दयालुता के ही लक्षण हैं और स्वयं जीवन बनकर इस शरीर में प्रविष्ट होकर जीवन दे रहे हैं । वह दयालु प्रभु ही सबको आजीविका देते हैं । वह परमात्मा पवित्र हैं सबका माता-पिता सबके दोषों को छिपाने वाला हैं । अर्थात् किसी के भी दोषों को नहीं देखता । ऐसा दयालु हैं ।
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वह भक्तों के साथ ही रहता हैं । हे सृष्टि के बनाने वाले प्रभो ! हे सर्वज्ञ आप महान् हैं । हे करुणा के सागर ! आप अत्यन्त निर्मल हैं और दूसरों को पवित्र करने वाले हैं । आपके गुणों को बार-बार याद करके आश्चर्य में डूब रहा हूँ ।
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भागवत में कहा है कि –
आप मुख्य प्राण सूत्रात्मा के रूप में चराचर जगत् को नियंत्रण में रखते हैं । आप ही जगत् के रक्षक हैं । हे भगवन् चित्त चेतना मन इन्द्रियों के स्वामी आप ही हैं । पञ्चभूत शब्दादि विषय और उनके संस्कारों के रचयिता भी महतत्त्व के रूप में आप ही हैं ।
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आप ही काल हैं । आप प्रतिक्षण सावधान रहकर अपने क्षण लव आदि विभागों के द्वारा लोगों की आयु क्षीण कर रहे हैं । फिर भी आप निर्विकार हैं क्योंकि आप ज्ञानस्वरूप परमेश्वर अजन्मा महान् और संपूर्ण जीवनदाता अन्तरात्मा हैं ।
इति श्रीमद् आत्मारामकृत ललितराग का हिन्दीभाषानुवाद सामप्त ॥२५॥
(क्रमशः)

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