शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

*गरभ गुण चिंतावणी कौ अंग*

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*दादू जिन पहुँचाया प्राण को, उदर उर्ध्व मुख खीर ।*
*जठर अग्नि में राखिया, कोमल काया शरीर ॥*
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*गरभ गुण चिंतावणी कौ अंग ॥*
मात पिता कौ गमि नहीं, तहाँ पिवायौ खीर ।
सो गुण थारा रामजी, बषनैं लिख्या सरीर ॥१॥
परब्रह्म-परमात्मा गर्भकाल में भी महान् उपकार जीव के प्रति करता है, उसी की स्मृति इस साषी से बषनांजी करा रहे हैं । माता के गर्भ में जब शिशु होता है तब भगवान् ऐसी व्यवस्था कर देता है कि शिशु को आहार पानी गर्भ में भी पर्याप्त मात्रा में मिल जाये । भगवान् यह कार्य किसी को दिखाकर नहीं करता । अलवत्ता इस उपकार का ज्ञान माता-पिता तक को नहीं हो पाता । हे परमात्मन् ! आपके इस उपकार का ही सुपरिणाम शरीर होता है जिसका उल्लेख सर्वत्र मिलता हैं ॥१॥
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*बासना रहित कीरतन कौ अंग ॥*
आसा बँधी न गाइये, करि लोगनि की आस ।
पूरणहारा पूरिसी, हिरदै राखि बिसास ॥२॥
परमात्मातिरिक्त अन्य संसारी लोगों से आशा करके, आशा = अभिलाषा = इच्छाओं के बंधन में बंधकर उनकी पूर्ति हेतु गाइये = प्रार्थना मत करिये । कारण, पूर्णकाम-परमात्मा अपनी अहैतुकी कृपावश स्वयं ही आपकी इच्छाओं की पूर्ति कर देगा । अतः हृदय में उस परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखो ॥२॥
(क्रमशः)

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