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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४१२)*
*राग जैत श्री ॥२६॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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४१२. अमिट नांव विनती । पंजाबी त्रिताल
तेरे नाम की बलि जाऊँ, जहाँ रहूँ जिस ठाऊँ ॥टेक॥
तेरे बैनों की बलिहारी, तेरे नैनहुँ ऊपरि वारी ।
तेरी मूरति की बलि कीती, वारि-वारि हौं दीती ॥१॥
शोभित नूर तुम्हारा, सुन्दर ज्योति उजारा ।
मीठा प्राण पियारा, तूँ है पीव हमारा ॥२॥
तेज तुम्हारा कहिये, निर्मल काहे न लहिये ।
दादू बलि बलि तेरे, आव पिया तूँ मेरे ॥३॥
नाम और नामी का अखण्ड प्रेम दिखलाते हुए श्रीमहर्षि दादूजी महाराज लिख रहे हैं कि – हे मेरे प्यारे राम ! जहां कहीं भी मैं रहूं वहां वहां पर आपके नाम का तथा नामीस्वरूप आपके चरणकमलों को बार-बार नमस्कार करता हूँ । आपके नेत्र कमलों की सुन्दरता को देखकर मैं पागल सा हो गया हूँ ।
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मेरा अन्तःकरण आपके प्रेम से आपके वश में हो रहा है । अर्थात् आपकी तरफ आकृष्ट हो रहा हूँ । अतः मैं आपके इस नेत्रसौन्दर्य पर सर्वस्य अर्पण कर रहा हूँ । आपकी मूर्ति का सौन्दर्य तो त्रिलोकी की सुन्दरता को तिरस्कृत करने वाले अद्भुत है । और प्राणियों के चित्त को आकृष्ट करने वाला होने से मैं उस मूर्ति के सौन्दर्य पर अपना सर्वस्य अर्पण कर रहा हूँ ।
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आपका स्वरूप तो ज्योतिर्मय होने के कारण अत्यधिक शोभित हो रहा हैं । आप तो बड़े ही मधुर हैं । मुझे बहतु प्यारे लगते हैं और, मेरे प्राणों के तो आप स्वामी ही हैं । अब आप ही कहिये कि क्या मैं आपके ज्योतिर्मय इस सुन्दर स्वरूप का दर्शन नहीं कर सकता हूँ ?
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मैं बार-बार आपके चरणों में मस्तक झुकाकर कह रहा हूँ कि हे स्वामिन् आप मेरे घर(अन्तःकरण) पधारिये । लिखा हैं कि – हे महामुने ! जो करोड़ों महात्मा है उनमें सतत नारायण परायण रहने वाले शान्त आत्मा पुरुष का मिलना अति दुर्लभ हैं । अरे तालाब इस समय तो तुममें दिव्यातिदिव्य पुष्प खिल रहे हैं इससे तेरे बहुत से साथी बने हुए हैं ।
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परन्तु जब तू क्षीण हो जायेगा तब तुझ में खिले हुए फूल मुरझा जायेंगे ये हंस तुझे छोड़कर आकाशमंडल में विहार करने लगेंगे । ये भ्रमर जो तेरे प्रेमी बने हुए हैं वे भी तुझे छोड़कर रसाल(आम्र) मुकुल का ही आश्रय लेंगे ।
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परन्तु यह तो तू बता कि यह मीन कहा जायेगा । इसे तेरे साथ ही नहीं किन्तु तुझसे पहले ही सूख जाना होगा । इस तरह प्रेमास्वादन करने वाले मीन और चातक ही होते हैं । जो अपने प्रियतम का त्याग नहीं कर सकते । इसी तरह भक्त भी भगवान् के प्रेम को त्यागकर अन्यत्र नहीं जाते ।
(क्रमशः)

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