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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*अणबंछ्या आगै पड़ै, खिर्या बिचारिक खाइ ।*
*दादू फिरै न तोड़ता, तरवर ताकि न जाइ ॥*
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बषनां अण्जाच्या भला, अहली जीभ न हारि ।
साहिब लाजै जाँचताँ, भगति न लाजाँ मारि ॥३॥
बषनांजी कहते हैं, परमात्मा बिना मांगे ही दे देता है । अतः अण्जाच्या = निष्काम भावापन्न रहना ही भला है क्योंकि मांगने पर जरुरी नहीं है कि आप जो मांगेंगे वह आपको मिल ही जायेगा ।
अतः मांगकर अहली = व्यर्थ ही अपनी जिव्हा की महत्ता कम मत करो । अरे ! आपके द्वारा याचना करने पर परमात्मा लज्जित होता है कि मेरा भक्त याचना कर रहा है । अतः हे भक्त ! भक्ति को लज्जित मत कर ॥३॥
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*श्रीदादू बचन प्रमाण ॥*
अणबंछ्या आगै पड़ै, खिर्या बिचारिक खाइ ।
दादू फिरै न तोड़ता, तरवर ताकि न जाइ ॥१९/३७॥
बिना मांगे सहज में ही जो सामने आ जाये, उसे ही प्रभु का प्रसाद समझकर वैसे ही ग्रहण करले जैसे पेड़ से गिरे फल को स्वीकार किया जाता है और पेड़ को देखकर कि उस पर लगे फल पक गये हैं, उन फलों को तोड़ने भी न जाये । अर्थात् दानवीर के यहाँ दान लेने भी न जावे । हरि पर विश्वास रखे ॥१९/३७॥
इति बेसास कौ अंग संपूर्ण ॥अंग ९२॥साषी १६६॥
(क्रमशः)

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