रविवार, 28 अप्रैल 2024

*है चक चौंध रु मंडल छायो*

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*दादू बंझ बियाई आत्मा, उपज्या आनन्द भाव ।*
*सहज शील संतोष सत, प्रेम मगन मन राव ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*रास रज्यो शरै पिय प्यारि ये,* 
*रंग बढ्यो किमि जात सुनायो ।*
*प्यारि लिई गति दामनि-सी दुति,* 
*है चक चौंध रु मंडल छायो ॥*
*नूपुर टूट गिर्यो मन सोचत,* 
*तोरि जनेउ कर्यो उहि भायो ।*
*कैत सबै यह काम सु आवत,* 
*बोझ सह्यो नित सोफल पायो ॥३९६॥*
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शरद पूर्णिमा की रात को रास हो रहा था, समाज में प्रेम रंग बहुत बढ़ा चढ़ा था । उसको सुनाया कैसे जा सकता है ?
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उसी समय श्रीप्रियाजी ने आवेश में आकर नृत्य की ऐसी विचित्र गति ली कि रास मण्डल में मानों बिजली-सी चमक उठी । उसकी आँखों में चकाचौंध हो गया, ऐसा विलक्षण प्रकाश छा गया ।
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किन्तु प्रियाजी का नूपुर(घुंघरू) टूट गया । उसके दाने बिखर गये । यह देखकर व्यासजी का मन चिन्ता में पड़ गया, किन्तु आपने शीघ्र ही अपना जनेऊ तोड़कर उसे ठीक बनाके पहना दिया । आपको ऐसा करना अच्छा लगा ।
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किन्तु किसी ने कहा- "जनेऊ क्यों तोड़ा, यह तो किसी अन्य धागे से भी ठीक बन सकता था ?" तब आपने उस महात्माओं के समाज में कहा- "आज तक इस यज्ञोपवीत का नित भार ही ढोना सहन किया था किन्तु आज यह काम आ गया । इससे आज इसके भार ढोने का फल मुझे मिल गया है"॥
(क्रमशः)

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