शनिवार, 13 अप्रैल 2024

*जानत है उनके नहिं बाधा*

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*सो सबहिन की सुधि जानै, जो जैसा तैसी बानै ।*
*सर्वंगी राम सयाना, हरि करै सो होइ निदाना ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*रीति लहै हित जी कि बडो पटु१,*
*कृष्ण पछै रु कहै मुखि२ राधा ।*
*भाव विकट्ट स्वभाव न होवत,*
*आप दया करि देत अराधा ॥*
*दूरि करे विधि और निषेध हि,*
*दंपति है उनके उह३ साधा ।*
*देन सबै सुखदास चरित्र हु,*
*जानत है उनके नहिं बाधा ॥३९२॥*
हितहरिवंशजी की उपासना पद्धति को कोई अति चतुर१ साधक ही प्राप्त कर सकता है । आप अपनी उपासना में मुख्य२ राधाजी को रखते थे और कृष्णजी को पीछे रखते थे । अर्थात् पहले राधाजी का ध्यान करते थे, पीछे कृष्णजी का ध्यान करते थे । पहले राधाजी को आरती करके भोग लगाते थे । पीछे कृष्णजी की आरती करके भोग लगाते थे ।
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यह भाव बड़ा ही विकट है, स्वभाव से ऐसा नहीं होता । भगवान् ही दया करके ऐसी उपासना पद्धति दें तो ही प्राप्त हो सकती है, अन्यथा नहीं ।
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आप शास्त्र विधि और निषेध को हृदय से दूर हटाकर दंपति(राधाकृष्ण) को ही हृदय में रखते थे । उनके मन ने वही३ साधना की थी ।
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आप राधाकृष्ण के ही चरित्रों का गान करते थे । वे चरित्र सभी भक्तों को सुखदाता होते हैं । यह सभी जानते हैं । हरि चरित्रों से किसी भी भक्त को दुःख नहीं होता वा हितहरिवंशजी जैसे भक्तों के चरित्रों से किसी को भी दुख नहीं होता । वे सभी को सुखदायक होते हैं ।
(क्रमशः)

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