शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

*योगी के लक्षण । बिल्वमंगल ।*

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*प्रेम लग्यों परमेश्वर सौं,*
*तब भूलि गयो सिगरो घरबारा ।*
*ज्यों उन्मत्त फिरे जित ही तित,*
*नेक रही न शरीर संभारा ॥*
*सास उसास उठै सब रोम,*
*चले दृग नीर अखंडित धारा ।*
*सुंदर कौन करे नवधा विधि,*
*छाकि पर्यो रस पी मतवारा ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*योगी के लक्षण । बिल्वमंगल ।*
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - एक मुसलमान नमाज पढ़ते समय 'हो अल्ला, हो अल्ला' कहकर अजान दे रहा था । उससे एक आदमी ने कहा, ‘तू अल्ला को पुकार रहा है तो इतना चिल्लाता क्यों है ? क्या तुझे नहीं मालूम कि उन्हें चींटी के पैरों के नूपुरों की भी आहट मिल जाती है ?’
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"जब उनमें मन लीन हो जाता है, तब मनुष्य ईश्वर को बहुत समीप देखता है । हृदय में देखता है । परन्तु एक बात है । जितना ही यह योग होगा, उतना ही बाहर की चीजों से मन हटता जायगा ।
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'भक्तमाल' में बिल्वमंगल नामक एक की बात लिखी हुई है । वह वेश्या के घर जाया करता था । एक दिन बहुत रात हो गयी थी, और वह वेश्या के घर जा रहा था । घर में माँ-बाप का श्राद्ध था, इसलिए देर हो गयी थी । श्राद्ध की पूड़ियाँ वेश्या को खिलाने के लिए ले जा रहा था ।
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वेश्या पर उसका इतना मन था कि किसके ऊपर से और कहाँ से होकर वह जा रहा था, उसे कुछ भी ज्ञान न था, कुछ होश ही न था । रास्ते में एक योगी आँखें बन्द किये ईश्वर का ध्यान कर रहा था, उसे भी बेहोशी की हालत में वह लात मारकर निकल गया ।
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योगी गुस्से में आकर बोल उठा, 'क्या तू देखता नहीं ? ईश्वर-चिन्तन कर रहा हूँ और तू लात मारकर चला जा रहा है !" तब उस आदमी ने कहा ‘मुझे क्षमा कीजिये; परन्तु मैं आपसे एक बात पूछता हूँ, वेश्या की चिन्ता करके तो मुझे होश नहीं, और आप ईश्वर की चिन्ता कर रहे हैं, फिर भी आपको बाहरी दुनिया का होश है ! यह कैसी ईश्वरचिन्ता है ?’
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वह भक्त अन्त में संसार का त्याग करके ईश्वर की आराधना करने चला गया । वेश्या से उसने कहा था, 'तुम मेरी ज्ञानदात्री हो, तुम्हीं ने मुझे सिखलाया कि ईश्वर पर किस तरह अनुराग किया जाता है ।' वेश्या को माता कहकर उसने उसका त्याग किया था ।"
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डाक्टर - यह तान्त्रिक उपासना है, इसके अनुसार स्त्री को माता कहकर सम्बोधन किया जाता है ।
(क्रमशः)

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