शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

*श्री रज्जबवाणी सवैया ~ २०*

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*पड्या पुकारै पीड़ सौं, दादू बिरही जन ।*
*राम सनेही चित बसै, और न भावै मन ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३, श्री स्वामी दादू दयाल जी के भेट के सवैया ।
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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दादूजी मातु बुलाय पिता हरि,
बालक बाल सु१ गोद सौं डारे ।
सांई समीर२ लियो घन दादु,
चहुं दिशि चातक चित्त पुकारे ॥
आदित्य आप सरोवर दादूजी,
शोषत ही सफरी३ शिष मारे ।
हो४ दादू के गमन दुखी शिष रज्जब,
प्रीति पचंड५ सु अंतर जारे ॥२०॥
दादूजी के रूप माता को हरि रूप पिता ने बुला लिया है, इसी से हम छोटे१ बालकों को अपनी रक्षा रूप गोद से डाल कर चले गये हैं ।
प्रभु रूप वायु२ ने दादूजी रूप बादल को खैंच लिया है अब हमारा चित्त रूप चातक चारों दिशाओं में दादू-घन के लिये पुकार रहा है ।
आदित्य रूप स्वयं प्रभु ने ही दादूजी रूप सरोवर को सुखा दिया है जिससे शिष्य रूप मच्छियें३ मारी गई है ।
सज्जनों४ ! दादूजी के गमन से हम शिष्य दु:खी हैं । उनकी तीव्र५ प्रीति अंतर हृदय को जला रही है ।
(क्रमशः)

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