मंगलवार, 21 मई 2024

शब्दस्कन्ध ~ पद #४२८

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*भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामी आत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।*
*साभार : महामण्डलेश्वर स्वामी अर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।*
*#हस्तलिखित०दादूवाणी सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #४२८)*
*राग धनाश्री ॥२७॥**(गायन समय दिन ३ से ६)*
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*४२८. कर्ता कीरति । त्रिताल*
*काइमां कीर्ति करूंली रे, तूँ मोटो दातार ।*
*सब तैं सिरजीला साहिबजी, तूँ मोटो कर्तार ॥टेक॥*
*चौदह भुवन भानै घड़ै, घड़त न लागै बार ।*
*थापै उथपै तूँ धणी, धनि धनि सिरजनहार ॥१॥*
*धरती अंबर तैं धर्‍या, पाणी पवन अपार ।*
*चंद सूर दीपक रच्या, रैणि दिवस विस्तार ॥२॥*
*ब्रह्मा शंकर तैं किया, विष्णु दिया अवतार ।*
*सुर नर साधू सिरजिया, कर ले जीव विचार ॥३॥*
*आप निरंजन ह्वै रह्या, काइमां कौतिकहार ।*
*दादू निर्गुण गुण कहै, जाऊँली हौं बलिहार ॥४॥*
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हे परमेश्वर ! मैं आपका क्या यशोगान करूं ? आप तो महान् दाता हैं तो भक्तों को अपने आप को भी प्रदान कर देते हैं । यह संसार आप का ही बनाया हुआ है । अतः आपको ही संसार कर्तृत्व शोभा देता है ।
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आप इस सृष्टि को संकल्प मात्र से रच देते हैं । क्षण में ही नष्ट कर देते हैं और दुबारा बनाने में आपको कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता । क्योंकि आप तो संकल्प से ही सृष्टि को बना देते हैं, ऐसा श्रुति कहती है । आप ही सबको धारण करने वाले तथा नष्ट करने वाले हैं ।
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हे सृष्टि को बनाने वाले परमेश्वर ! आपको धन्यवाद है, जो ऐसा कार्य करते हैं । पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, तेज आदि तत्त्वों को आपने ही रचा है, जिन का कोई आदि अन्त ही नहीं दिखता । आपने ही सूर्य-चन्द्रमा, रात-दिन, ब्रह्मा, विष्णु, शिव इनको रचा है ।
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संसार की रक्षा के लिये विष्णु रूप से अवतार लेते हैं । देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी की सृष्टि भी आपकी ही बनाई हुई है । हे जीवात्मन् ! प्रभु के गुणों का विचार करके उसीकी भक्ति करके उसको प्राप्त कर । जो परमात्मा अपनी सत्ता मात्र से संसार की रचना रूप खेल खेलता हैं, स्वयं माया रहित, निर्गुण, सगुण होकर अव्यक्त, अचल रहता है ।
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तैत्तरीय में लिखा है कि –
जिससे यह सारे भूत पैदा होते हैं, पैदा होकर जिससे जीते हैं और प्रलय में उसी में लीन होकर रहते हैं, वह ही ब्रह्म कहलाता है ।
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मुण्डक में कहा है कि –
उसी परमेश्वर से प्राण, मन, इन्द्रियां, आकाश, वायु, तेज, जल और विश्व को धारण करने वाली पृथिवी पैदा होती है ।
(क्रमशः)

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