गुरुवार, 30 मई 2024

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*दादू हिन्दू लागे देहुरे, मुसलमान मसीति ।*
*हम लागे एक अलेख सौं, सदा निरंतर प्रीति ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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हिंदू आषै राम को, मुसलमान षुदाइ।
जोगी आषै अलख कौं, तहां राम अछै न षुदाइ॥
गोरख कहते हैं, हिंदू पूजता राम को, मुसलमान पूजता है खुदा को। जोगी किसको पूजता है ? अलख को। न राम को न खुदा को। उसका कोई नाम नहीं है--न राम न खुदा .. । सब नाम आदमी के दिये हुए हैं वह तो विशेषण-शून्य है। वह तो निर्विकार है। वह तो निराकार है, अलख है।
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अलख-अर्थात आंखो के भी पकड़ में न आये। कानो के भी सुनने में न आए। हांथों के भी छूने में न आए, इंद्रियातीत है। उसे राम कहे तो छोटा हो जाएगा उसे खुदा कहे, छोटा हो जाएगा। उसे शब्द दें तो असत्य हो जाएगा। जो सच्चा खोजी है, वह न तो हिंदू होता है न मुसलमान होता है। हो ही नहीं सकता।
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उसे शब्द और शास्त्र और विशेषण और सम्प्रदाय नहीं बांध सकते। न मुहम्मद मुसलमान हैं न, न कृष्ण हिंदू हैं, न बुद्ध बौध हैं और न जीसस ईसाई हैं--याद रखना। इस जगत में जिन्होनें जाना है, उनकी जाति नहीं है। गोरख ठीक कहते है : सो दरवेश अलह की जाती। वे तो अल्लाह की जाति के हो जाते है, उनकी फिर क्या जाति ?
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अलह हमारा रंग, अलह हमारी जाति। फिर तो उसका रंग भी अल्लाह का है और जाती भी अल्लाह की फिर वे हिंदू नहीं, मुसलमान नहीं, ईसाई नहीं। जिसने जाना, सब धर्म उसके हैं और कोई धर्म उसका नहीं है। न वहां राम हैं, न वहां खुदा हैं--योगी उस अलख को पुकारता है। उसी अलख को हम पुकार रहें हैं। यह तो योगियों का जमघट है।
मरौ हे जोगी मरौ ~ ओशो

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