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*दादू अंबर
धरती सूर शशि, सांई, सब लै लावै अंग ।*
*यश कीरति
करुणा करै, तन मन लागा रंग ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी
राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर,
राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~
रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~
@Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*केशव
लटेराजी और उनके पुत्र परशुरामजी*
*छप्पय-*
*लग्यो लटेरा
लटकि के, केशव केवल राम से ॥*
*कवित सवैया
गीत, भाषि भगवंत रिझायो ।*
*सुरसुरानन्द
प्रताप, आप हरि हृदय सु आयो ॥*
*यथा योग्य
यश गाय, लोक परलोक सुधारयो ।*
*परशुराम-सुत
सरस१, सकल घट ब्रह्म विचारयो ॥*
*रात दिवस
राघव कहै, धर्म न चूको धाम२ से ।*
*लग्यो लटेरा
लटकि के, केशव केवल राम से ॥२९२॥*
केशव लटेरा(छाप
थी) प्रभु की ओर झुककर केवल राम के चिन्तन द्वारा राम के स्वरूप में ही लगे थे ।
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आपने कवित्त, सवैया, और हरिगीतक वा गाने योग्य गीत(भजन) आदि से
भगवान् का यश कथन करके भगवान् को प्रसन्न किया था । सुरसुरानन्दजी के उपदेश रूप
प्रताप से आपके हृदय में अच्छी प्रकार हरि प्रकट हुए थे ।
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आपने
यथायोग्य जैसा गाना चाहिये, वैसा ही हरि और संतों का यश गान करके अपना परलोक
सुधारा था । आपके पुत्र परशुरामजी ने भी सुन्दर१ ब्रह्मविचार द्वारा संपूर्ण
शरीरों में ब्रह्म का ही साक्षात्कार किया था । राघवदासजी कहते हैं- वे रात्रि दिन
भागवत धर्म के द्वारा भगवान् का ही चिन्तन करते थे । ब्रह्मचिन्तन से कभी भी चूकते
नहीं थे अर्थात् भूलते नहीं थे, निरन्तर करते थे ॥२९२॥
(क्रमशः)
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