मंगलवार, 25 जून 2024

मेरे बालम कौ रामइयौ नाउँ रे

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*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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*पीव मेरी प्यास मिटावेगा,*
*तब आपहि प्रेम पिलावेगा ॥*
*दे अपना दर्श दिखावेगा,*
*तब दादू मंगल गावेगा ॥*
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*बिरह ॥*
मेरे भाई, बाम्हण दषिणा लेहु रे ।
मेरे घरि बालम आवै, सोई दिन देहु रे ॥टेक॥
मेरे बालम कौ रामइयौ नाउँ रे । 
पंथी रे संदेसौ कहियौ, बलि बलि जाउँ रे ॥
सुणि करि बिलम न लावैगा रे । 
मेरी आँषि फुरूँकै आवैगा रे ॥
मेरा पाँवाँ का लाँक बिझावैगा रे । 
मेरि दाहिणी भुजा फुरकावैगा रे ॥
बषनां मंगल गावैगा रे । 
मेरा रामसनेही आवैगा रे ॥२॥
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हे ब्राह्मण भाई ! मेरे घर पर मेरे प्रियतम पधार आवें, मुझे ऐसा मुहूर्त निकाल कर दे और मुहूर्त बताने की अपनी दक्षिणा मेरे से प्राप्त कर । ब्राह्मण मुहूर्त निकालने के लिये प्रियतम का नाम पूछता है क्योंकि मुहूर्त नाम के अनुसार ही निकलता है । इस पर विरहनी प्रियतम का नाम ‘रामइयौ’ बताते हुए कहती है । मेरे पति का नाम रामइयौ है ।
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ब्राह्मण मुहूर्त निकाल कर दे देता है । विरहनी प्रियतम को राहगीर के साथ संदेशा भेजती है कि हे राहगीर ! आप प्रियतम से कहना, मैं उस पर बलि = कुर्बान हूँ । मैं उसकी हो गई हूँ । वह आये और मुझे अपने यहाँ ले जाए । तुम निश्चय जानों, वह मेरा संदेशा सुनते ही बिना विलम्ब किये तत्काल आयेगा क्योंकि मेरी बाँई आँख फड़क रही है ।
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मुझे विश्वास है, वह आयेगा और मेरे पैरों की विरह के कारण उत्पन्न लाँक = धूजन = कँपकँपाहट को शांत करके मेरी दाहिनी भुजा को अपनी गर्दन पर रखवाकर मुझे अपनी अंक में समा लेगा । मेरा रामस्नेही = प्रियतम आयेगा और मैं बषनां उसके आने की खुशी में मंगल गाउंगा, आनंदोत्सव मनाउंगा ॥२॥
(क्रमशः)

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