सोमवार, 15 जुलाई 2024

= १७९ =

*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*नैनहुँ बिन सूझे नहीं, भूला कतहूँ जाइ ।*
*दादू धन पावै नहीं, आया मूल गँवाइ ॥*
=============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
एक संगीतज्ञ था। उसने अपनी वीणा पर एक गीत गाया। बहुत सुंदर था। एक वैज्ञानिक भी वहां बैठा सुनता था। उसने सोचा, जरूर वीणा में कोई बात होनी चाहिए। रात जब संगीतज्ञ सो गया, वह वैज्ञानिक उसके घर में घुस गया। उसने पूरी वीणा तोड़ कर देख डाली, तार-तार कर डाली, टुकड़े-टुकड़े कर डाली। हाथ में कुछ तार लगे, कुछ टुकड़े लगे लकड़ी के, कोई संगीत पकड़ में नहीं आया। उसने कहा: सब असार है। मालूम होता है धोखा था संगीत। संगीत था नहीं, मुझे धोखा दिया गया है। वीणा को पूरा खोज लेता हूं, कहीं कोई संगीत मिलता नहीं।
.
जीवन का सत्य, एनालिसिस से उपलब्ध नहीं होता। जीवन का सत्य सिंथेसिस से उपलब्ध होता है। जीवन का सत्य विश्लेषण से नहीं मिलता है, संश्लेषण से मिलता है। जीवन उसके खंड-खंड टुकड़ों में नहीं, उसकी होलनेस में, उसकी परिपूर्णता में है। सौंदर्य भी परिपूर्णता में है..सत्य भी, जीवन भी, आनंद भी। जो लोग खंडों में तोड़ते हैं, वे वंचित रह जाते हैं। लेकिन उस वंचित रह जाने को वे जीवन पर थोप देते हैं, कि जीवन में कुछ भी नहीं है। और जब जीवन में कुछ भी नहीं, तो छोड़ो इस जीवन को, भागो इस जीवन से, त्यागो इस जीवन को। फिर खोजो किसी परमात्मा को, खोजो किसी मोक्ष को, जहां सब कुछ होगा।
.
लेकिन अगर ये विश्लेषण करने वाले लोग किसी दिन मोक्ष पहुंच गए..जैसा कि कभी हुआ नहीं आज तक कि वे पहुँच गए हों, लेकिन अगर किसी दिन मोक्ष पहुंच गए..तो वे पाएंगे कि मोक्ष भी असार है..वहां भी कुछ नहीं है। क्योंकि मोक्ष में वे क्या पाएंगे ? जो भी मिलेगा उनकी एनालिसिस सिद्ध कर देगी यहां भी कुछ नहीं है। बट्र्रेंड रसल ने एक बार यह कहा कि मैं सोचता हूं कि कहीं मुझे मोक्ष मिल गया, तो मोक्ष कैसा होगा ? वहां न कोई दुख होगा, न सुख, न वहां शांति होगी, न अशांति। वहां न अंधकार होगा, न प्रकाश। वहां न प्रेम होगा, न घृणा। वहां होगा क्या ?
.
और मोक्ष से लौटने का कोई उपाय नहीं है। मोक्ष में एंट्रेंस होता है, एक्झिट नहीं होती। वहां भीतर जा सकते हैं, बाहर आने का कोई मौका नहीं है। तो बट्र्रेंड रसल ने कहा कि वहां करेंगे क्या ? वहां जो लोग पहुंच गए हैं अब तक बहुत घबड़ा गए होंगे। बहुत बोर्डम पैदा हो गई होगी। वहां करेंगे क्या ? वहां कोई अभाव नहीं, कोई दुख नहीं, कोई पीड़ा नहीं। वहां कोई कामना नहीं, कोई महत्वाकांक्षा नहीं। वहां लोग हैं, और हैं, और बने रहेंगे अनंत तक, बने रहेंगे अनंत तक। नहीं, बट्र्रेंड रसल ने कहा: मेरी तबीयत बहुत घबड़ाती है। ऐसे मोक्ष से तो नरक ही बेहतर। वहां कुछ करने को तो होगा। यह मोक्ष का विश्लेषण हो गया। रसल ने मोक्ष का विश्लेषण कर लिया। नहीं कुछ वहां भी दिखाई पड़ता।
.
महावीर, बुद्ध धोखे में पड़ गए मालूम होते हैं। शायद वे मोक्ष का विश्लेषण नहीं कर पाए। रसल ने मोक्ष का विश्लेषण किया तो पाया कि वहां भी कुछ नहीं हो सकता है। मनुष्य विश्लेषण की छाया में भटका है आज तक। यह मैं पहला सूत्र आपसे कहना चाहता हूं..अगर जीवन को एक मंदिर बनाना है, तो जीवन को संश्लेषण की दृष्टि, सिंथेटिक एटिट्यूड से देखने की क्षमता पैदा करनी होगी विश्लेषण की दृष्टि से नहीं। जब भी हम चीजों को तोड़ देते हैं तो स्मरण रहे, चीजें होती हैं अपनी पूर्णता में, और कोई भी चीज अपने खंडों का जोड़ नहीं होती केवल। खंडों के जोड़ से ज्यादा होती है।
.
एक कविता शब्दों का जोड़ ही नहीं होती, शब्दों के जोड़ से कुछ ज्यादा होती है। एक चित्र रंगों का जोड़ ही नहीं होता है, रंगों के जोड़ से कुछ ज्यादा होता है। एक संगीत केवल वीणा और वीणावादक की अंगुलियां नहीं होतीं, कुछ और भी ज्यादा होता है। और वह जो ज्यादा है, वही रहस्यपूर्ण, वही अदृश्य, वही न दिखाई पड़ने वाला जीवन का रस है, जीवन का आनंद है, जीवन में प्रभु है। जीवन जोड़ से कुछ ज्यादा है। गणित में जोड़ होते हैं दो और दो चार होते हैं। जीवन में दो और दो चार नहीं होते। दो और दो के बाद चार तो हो जाते हैं। और एक नई चीज पैदा हो जाती है, जो दो और दो में होती ही नहीं..जो उनके मिलन में होती है।
.
अगर मैं किसी को प्रेम करता हूं, और उसे अपने हृदय से लगा लूं। और एक वैज्ञानिक विश्लेषण करे कि दो आदमियों की छाती की हड्डियां जब मिलती हैं तो आनंद कैसे होता होगा ? तो हड्डियों के मिलने से कैसा आनंद हो सकता है ? कैसा प्रेम हो सकता है ? हड्डियों के मिलने से हो सकता है कोई विद्युत घर्षण पैदा हो जाती हो। यह हो सकता है कि हड्डियों को एक-दूसरे से गर्मी मिल जाती हो, लेकिन आनंद का क्या संबंध है ? प्रेम का क्या संबंध है ? अगर वैज्ञानिक किसी आलिंगन का विश्लेषण करे तो पाएगा, यह बेवकूफी है, एब्सर्ड है बिल्कुल। इससे कुछ नहीं मिल सकता, इसमें कुछ हो नहीं सकता।
.
लेकिन जो प्रेम में हैं वे जानते हैं कि आलिंगन में हड्डियां होती ही नहीं, शरीर मौजूद ही नहीं रह जाता। जब कोई किसी प्रेम से किसी को अपने हृदय के निकट लेता है, तो शरीर मौजूद ही नहीं रह जाते, शरीर अनुपस्थित हो जाते हैं। कोई और चीज उपस्थित हो जाती है, जिसका शरीर से कोई वास्ता नहीं है। दिखाई पड़ते हैं कि दो शरीर निकट आए, लेकिन निकट कोई और चीज आती है जो दिखाई भी नहीं पड़ती। आत्मा निकट आती है।
ओशो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें