सोमवार, 29 जुलाई 2024

*(१)भक्तों के संग में*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू श्रोता स्नेही राम का, सो मुझ मिलवहु आणि ।*
*तिस आगे हरि गुण कथूं, सुणत न करई काणि ॥*
.
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
==============
*परिच्छेद १३६~श्रीरामकृष्ण तथा कर्मफल*
*(१)भक्तों के संग में*
.
श्रीरामकृष्ण काशीपुर के उद्यान-भवन के उसी ऊपरवाले कमरे में बैठे हुए हैं । भीतर शशि और मणि हैं । श्रीरामकृष्ण मणि को इशारे से पंखा झलने के लिए कह रहे हैं । मणि पंखा झलने लगे । शाम के पाँच-छः बजे का समय होगा । सोमवार, शुक्ल अष्टमी, १२ अप्रैल १८८६ ।
.
उस मुहल्ले में संक्रान्ति का मेला भरा हुआ है । श्रीरामकृष्ण ने एक भक्त को मेले से कुछ चीजें खरीद लाने के लिए भेजा है । भक्त के लौटने पर श्रीरामकृष्ण ने उससे सामान के बारे में पूछा कि वह क्या क्या लाया । 
भक्त - पाँच पैसे के बताशे, दो पैसे का एक चम्मच और दो पैसे का एक तरकारी काटनेवाला चाकू ।
.
श्रीरामकृष्ण - और कलम बनानेवाला चाकू ?
भक्त - वह दो पैसे में नहीं मिला ।
श्रीरामकृष्ण - (जल्दी से)- नहीं, नहीं, जा ले आ ।
मास्टर नीचे बगीचे में टहल रहे हैं । नरेन्द्र और तारक कलकत्ते से लौटे । वे गिरीश घोष के यहाँ तथा कुछ अन्य जगह भी गये थे ।
.
तारक - आज तो भोजन बहुत हुआ ।
नरेन्द्र - हाँ, हम लोगों का मन बहुत कुछ नीचे आ गया है । आओ, अब हम तपस्या करें ।
(मास्टर से) "क्या शरीर और मन की दासता की जाय ? बिलकुल जैसे गुलाम की-सी अवस्था हो रही है, शरीर और मन मानो हमारे नहीं, किसी और के हैं ।"
.
शाम हो गयी है । ऊपर के कमरे में और अन्य स्थानों में दीये जलाये गये । श्रीरामकृष्ण बिस्तर पर उत्तरास्य बैठे हुए हैं । जगन्माता की चिन्ता कर रहे हैं । कुछ देर बाद फकीर उनके सामने अपराध-भंजन स्तव पढ़ने लगे । फकीर बलराम के पुरोहित-वंश के हैं ।
.
“प्राग्देहस्थो यदासं तव चरणयुगं नाश्रितो नार्चितोऽहम् ।
तेनाद्येऽकीर्तिवर्गेर्जठरजदहनैर्बाध्यामानो बलिष्ठैः ॥
स्थित्वा जन्मान्तरे नो पुनरिह भविता क्वाश्रयः क्वापि सेवा ।
क्षन्तव्यो मेऽअपराधः प्रकटितरदने कामरूपे कराले ॥" इत्यादि ।
.
कमरे में शशि, मणि तथा दो-एक भक्त और हैं । स्तवपाठ समाप्त हो गया । श्रीरामकृष्ण बड़े भक्ति-भाव से हाथ जोड़कर नमस्कार कर रहे हैं ।
मणि पंखा झल रहे हैं । श्रीरामकृष्ण इशारा करके उनसे कह रहे हैं, “एक कूँड़ी ले आना । (यह कहकर कूँड़ी की गढ़न उँगलियों से लकीर खींचकर बता रहे हैं ।) इसमें क्या एक पाव दूध आ जायगा ? पत्थर सफेद हो ।"
मणि - जी हाँ ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें