सोमवार, 29 जुलाई 2024

*श्री रज्जबवाणी, साधु मिलाप मंगल उच्छाह का अंग ७*

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*दादू काढे काल मुखि, गूंगे लिये बुलाइ ।*
*दादू ऐसा गुरु मिल्या, सुख में रहे समाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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सवैया ग्रंथ भाग ३
साधु मिलाप मंगल उच्छाह का अंग ७
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उत्तम ठौर अतीत१ को बास जु,
साधु समाय२ न मध्यम३ के घर ।
मानसरोवर सी निधि छाड़ि के,
हंस रहै कत४ आय थली५ पर ॥
विविध प्रकार के बाग बिना अलि६,
केतक७ बेर व्है कैर कली पर ।
कोकिला कीर आंबे रचै८ रज्जब,
नांहिं समागम आकहु के सर९ ॥३॥४७
हंस मानसरोवर जैसी निधि को छोड़कर मरुस्थल५ में जाकर किस४ लिए रहेगा ?
नाना प्रकार के पुष्पों के बाग बिना भ्रमर६ कैर वृक्ष के पुष्प की कली पर कितनी७ देर स्थिर होकर ठहरेगा ?
कोयल और शुक पक्षी आम वृक्ष में ही अनुरक्त८ होते हैं, आकड़े की शाखा रूप शिर९ पर उनका समागम नहीं होता ।
वैसे ही विरक्त१ संत उत्तम जनों के स्थान पर ही निवास करते हैं, हीन३ जनों के घर में प्रवेश२ नहीं करते ।
(क्रमशः)

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