सोमवार, 22 जुलाई 2024

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*जे कबहूँ समझै आत्मा, तौ दृढ़ गह राखै मूल ।*
*दादू सेझा राम रस, अमृत काया कूल ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain
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*महावीर और उनके प्रथम शिष्य गौतम की कहानी*
जिन सूत्र 31 B ये तीसरा सूत्र है।
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ये महावीर ने अपने महानिर्वाण के क्षण भर पहले कहा था। ये अपने शिष्य गौतम के लिए कहा था। गौतम महावीर का प्रथम गणधर है। उनका सबसे ज्यादा निकट का शिष्य। लेकिन विडंबना भाग्य की, कि वो आया था सबसे पहले लेकिन मुक्ति का स्वाद ना ले सका। वो महावीर के पास बरसों रहा। फिर भी इस परम दशा को ना पहुंच सका जिसको हम कैवल्य कहें। समाधि कहें। मन मिट ना सका। और उसने कुछ छोड़ा हो करने में, ऐसा भी नहीं।
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उसने सब किया जो महावीर ने कहा। लेकिन एक छोटा सा राग पैदा हो गया। वो राग था महावीर के प्रति। वो राग था महावीर के चरणों का। उतने ही राग ने रोक लिया। एक प्रेम लग गया महावीर से। महावीर के बिना उसे तकलीफ होने लगी। दिन को भी कहीं जाता तो बस महावीर की ही याद आती रहती। महावीर ने उसे कई बार कहा कि तूने सब छोड़ दिया है और मुझे क्यूं पकड़ लिया है ? क्यूंकि असली सवाल छोड़ने का नही है, असली सवाल तो पकड़ ही छोड़ देने का है। तुमने कुछ पकड़ा। किसी ने कुछ और पकड़ा। लेकिन पकड़ तो जारी रहती है।
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किसी ने धन पकड़ा, किसी ने धर्म पकड़ा। किसी ने पत्नी पकड़ी। किसी ने गुरु पकड़ा। लेकिन पकड़ तो जारी रहती है। अब महावीर बड़े कठोर हैं, इस दृष्टि से। क्यूंकि इनका पूरा राग से ही विरोध है। उनका रास्ता ही वीतराग का है। ये गौतम सब छोड़ आया। पत्नी होंगे, बच्चे होंगे। घर द्वार होगा। मित्र परिजन होंगे। धन संपत्ति होगी। पद प्रतिष्ठा होगी। सब छोड़ आया। ये बड़ा पंडित था। ब्राह्मण था। उसने सब शास्त्र, वेद, उपनिषद सब छोड़ दिए। लेकिन वो सब छोड़ के महावीर के चरणों को पकड़ के बैठ गया। ये महावीर का दीवाना बन गया। तो महावीर उसे बार बार कहते रहे कि तू मुझे भी छोड़। ये बात ही सुनकर इसको कष्ट होता।
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ये बात ही कल्पना के बाहर थी। महावीर को छोड़ो। वो सब छोड़ने को तैयार था महावीर के लिए। सब छोड़ा ही महावीर के लिए था। अब ये तो बात ज़रा ज्यादा है कि महावीर को भी छोड़ो। तो फिर सब छोड़ा ही किसलिए था ? वो महावीर के लिए ही छोड़ा था। वो मुक्त ना हो सका। महावीर ने जिस दिन देह छोड़ी, उसे सुबह ही दूसरे गांव में उपदेश के लिए भेजा था। शायद जानके ही भेजा हो । क्यूंकि वो पास रहेगा तो बहुत दुखी होगा। ये मृत्यु उसके सामने कहीं उसे विक्षिप्त ना कर दे।
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उसका लगाव बहुत था। फिर पीछे से खबर मिलेगी तो बात आई गई हो जाएगी। फिर उसे समय मिल जाएगा। अघात मृत्यु का अपने सामने ही महावीर को मरा हुआ देखना, देह से छूट जाना हुआ देखना। शायद उसके प्राणों को तोड़ दे। शायद वो सह ना पाए। उसे दूसरे गांव भेज दिया। जब वो सांझ को लौट रहा था दूसरे गांव से तो राहगीरों ने रास्ते में उस से कहा कि गौतम, तुम्हे कुछ पता है ? महावीर जा चुके। अब तुम कहा जा रहे हो ? अब वो सत पुरुष ना रहा।
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तो वो वहीं रोने लगा। वहींं छाती पीटके चिल्लाने लगा। भरी आंखों से, आंसू टपकते आंखों से लोगो से उसने पूछा कि एक बात मुझे पूछनी है ! ये कैसे हुआ ? ये उन्होंने कैसा अन्याय किया ? जीवन भर मैं उनके साथ रहा। तो आज तो कम से कम मुझे बाहर ना भेजते, दूर ना भेजते। ये उन्होंने कौनसा बदला लिया ? एक ही बात पूछनी है मुझे_मरते समय मुझे याद किया था ? मरने के पहले मेरे लिए कोई इशारा छोड़ा ? क्यूंकि मैं तो अभी भी अंधेरे में भटक रहा हूं। मेरा क्या होगा ? दीया बुझ गया और मेरा क्या होगा ?
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तो उन्होंने ये सूत्र महावीर ने गौतम के लिए कहा है। इसलिए गौतम का नाम इस सूत्र में आता है। उन लोगों ने कहा कि महावीर ने तुझे याद किया था। ये सूत्र तेरे लिए छोड़ गए हैं। "तू महासागर को तो पार कर गया है। अब तट के निकट पहुचके क्यूं खड़ा है ? उसे पार करने में शीघ्रता कर। हे गौतम, क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। हे गौतम, तू पूरा भवसागर पार कर गया। सारा संसार छोड़ दिया। सब तरफ से राग की जड़े उखाड़ ली। और अब तू किनारे को पकड़ के क्यूं रुका है ?
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किनारा यानी महावीर। ऐसा समझो की तुम उस दूर के किनारे को पाने के लिए सारी नदी पार करते हो। निश्चित ही उस किनारे जाने के लिए ही नदी पार करते हो। फिर इस नदी के सारे कष्ट उठाते हो। तूफान, झंझावात, धार की ऊपद्रव। मृत्यु का डर, डूब जाने का भय। ये सब को तुम पार कर जाते हो। फिर उस दूसरे किनारे को पकड़ के रुक जाते हो। रुके हो नदी में। किनारे को पकड़ के रुके हो।
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तुम कहते हो इसी किनारे के लिए तो सारी नदी पार की। किनारा छोड़ा। नदी छोड़ी । इतना संघर्ष झेला। अब इस किनारे को ना छोड़ेंगे। तो महावीर कहते हैं कि ये तो कुछ लाभ ना हुआ। रुके तो तुम इस नदी में हो। अब इस किनारे को भी छोड़ो, बाहर निकलो। अब पार हो गए। नदी छूट गई। किनारे को भी छोड़ो। तो गुरु का उपयोग दूर के किनारे की तरह है। नदी को पार करने में निमित बना लेना। लेकिन जब नदी पार हो जाए तो गुरु को पकड़ के मत रुक जाना।
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महावीर कहते हैं, क्षण भर का भी प्रमाद मत कर। और इस में क्षण भर की देर मत कर। आलस मत कर। क्यूंकि समय बीता जाता। फिर लौट कर ना आयेगा। और जो महावीर के जीते जी ना हो सका वो महावीर की मृत्यु के कारण हो गया। गौतम को वो चोट भारी पड़ी। किनारा उसने नहीं छोड़ा। किनारा खुद ही जा चुका था। अब पकड़ने को कुछ था भी नही। जो जीवन भर महावीर के साथ रह के बोध ना हुआ था, वो महावीर के मरने के एक दिन बाद गौतम समाधि को उपलब्ध हो गया।
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उसने जान लिया संसार ही असार नहीं है, यहां सदगुरु के चरण भी छूट जाते हैं। यहां संपति ही नहीं छूटती यहां सदगुरु भी छूट जाता है। यहां सभी कुछ असार है। यहां अपने में ही लौट आने में सार है।ऐसा समझके, और तो सब छोड़ ही चुका था, महावीर के प्रति एक लगाव था, ये भी छूट गया। और ये लगाव बिलकुल मानवीय है, समझ में आता है। महावीर जैसा प्यारा पुरुष हो तो किसे लगाव ना होगा।
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गौतम की अड़चन समझ में आती है। महावीर ही कठोर मालूम होते हैं। गौतम का भाव तो ठीक ही है। समझ में पड़ता है। इतना प्यारा पुरुष कभी कभी होता है। और ऐसे प्यारे पुरुष को पकड़ लेने का मन किसके मन में ना होगा। और एक बार ऐसा भी होता है कि छोड़ो मोक्ष, छोड़ो बैकुंठ, यही चरण काफी हैं। ऐसा ही गौतम को हुआ होगा।
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सब संसार छोड़ने की हिम्मत की थी लेकिन ये चरण ना छोड़ सका। लेकिन फिर ये चरण एक दिन छूट गए। जो भी बाहर है, वो छूट ही जाएगा। इसलिए महावीर कहते हैं आत्मा में ही रमण करो। सब तरफ से अपने में ही लौट आओ। अपने में ही लीन हो जाओ। उस आत्मलीनता को ही महावीर ने मोक्ष कहा है।
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ये जो निमंत्रण गौतम के लिए है, यही निमंत्रण तुम्हारे लिए भी है। उठो, अपने को जगाओ। बहुत बड़ी संभावना तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है। खतरा है, अभय चाहिए। दुसाहस चाहिए। कहते हैं हजार बुलाए जाते हैं, सौ पहुंचते हैं। सौ जो पहुंचते हैं उनमें से 10 चलते हैं। और जो 10 चलते हैं, उनमें से कहीं एक सिद्ध अवस्था को उपलब्ध हो पाता है। सुनो इस निमंत्रण को। करो हिम्मत। चलो थोड़े कदम महावीर के साथ।
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थोड़े ही कदम चलकर तुम पाओगे के जीवन की रसधार बहने लगी। थोड़े ही कदम चलकर तुम पाओगे की संपदा करीब आने लगी। आने लगी शीतल हवाएं शांति की, मुक्ति की। फिर तुम रुक ना पाओगे। फिर तुम्हें कोई भी रोक न सकेगा। थोड़ा लेकिन स्वाद जरूरी है। दो कदम चलो स्वाद मिल जाए, फिर तुम अपने स्वाद के बल ही चल पड़ोगे। जो उठता है, वही पाता है। जो सोया रहता है, वह खो देता है।
आचार्य रजनीश ओशो"

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