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*दादू मरिये राम बिन, जीजे राम सँभाल ।*
*अमृत पीवै आत्मा, यों साधू बंचै काल ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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*गीता दर्शन–भाग–5*
*मनुष्य बीज है परमात्मा का*
*अध्याय—11—(प्रवचन—दसवां)*
ध्यान रहे, आपको तब तक शरीर के और आत्मा के अलग होने का पता नहीं चलेगा, जब तक आप कोई ऐसा प्रयोग न करें, जिस प्रयोग में दोनों की क्रियाएं अलग हों। अभी आपको भूख लगती है, तो आपके शरीर को भी लगती है, आपको भी लगती है। बहुत मुश्किल है तय करना कि शरीर को भूख लगी कि आपको लगी।
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अभी आप जो भी कर रहे हैं, उसमें आपकी क्रियाओं में तालमेल है, शरीर और आप में तालमेल है। आपको कोई न कोई ऐसा अभ्यास करना पड़े, जिसमें आपको कुछ और हो रहा है, शरीर को कुछ और हो रहा है, बल्कि शरीर को विपरीत हो रहा है, आपको विपरीत हो रहा है।
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लोगों ने भूख के साथ भी प्रयोग किया है। उपवास वही है। वह इस बात का प्रयोग है कि शरीर को भूख लगेगी और मैं स्वयं को भूख न लगने दूंगा। भूखे मरने का नाम उपवास नहीं है। अधिक लोग उपवास करते हैं, वे सिर्फ भूखे मरते हैं। क्योंकि शरीर को भी लगती है भूख, उनको भी लगती है। बल्कि सच तो यह है कि भोजन करने में उनकी आत्मा को जितनी भूख का पता नहीं चला था, उतना उपवास में पता चलता है।
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भोजन करते में तो पता चलता नहीं; जरूरत के पहले ही शरीर को भोजन मिल जाता है। भूख भीतर तक प्रवेश नहीं करती। उपवास कर लिया, उस दिन दिनभर भूख लगी रहती है। खाते वक्त तो दो दफे लगती होगी दिन में, तीन दफा लगती होगी। न खाएं, तो दिनभर लगती है ! भूख पीछा करती है। शरीर तो भूखा होता ही है, आत्मा भी भीतर भूख से भर जाती है।
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उपवास का प्रयोग इसी तरह का प्रयोग है, जैसा नींद का प्रयोग है। शरीर को भूख लगे और आप भीतर बिना भूख के रहें, तो दोनों क्रियाएं अलग हो जाएंगी। जिस दिन आपको साफ हो जाएगा, शरीर को भूख लगी और मैं तृप्त भीतर खड़ा हूं, कोई भूख नहीं है, उस दिन आपको भेद का पता चल जाएगा। शरीर सो गया, आप जागे हुए हैं, भेद का पता चल जाएगा। और जब भेद का पता चलेगा, तभी जब मृत्यु होगी, शरीर मरेगा, आप नहीं मरेंगे, तब आपको उस भेद का भी पता चल जाएगा।
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नींद से शुरू करें, धीरे— धीरे, धीरे— धीरे भीतर भेद साफ होने लगता है, रोशनी भीतर बढ़ने लगती है। रोशनी हमारे पास है, हम उसे बाहर उपयोग कर रहे हैं, भीतर कभी ले नहीं जाते। तो सारी दुनिया को देखते हैं, अपने भर को छोड़ देते हैं।
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इसलिए अर्जुन को दिखाई नहीं पड़ा। क्योंकि मृत्यु तो किसी को भी दिखाई नहीं पड़ती है अपनी, सिर्फ दूसरे की दिखाई पड़ती है। इसलिए दूसरे के संबंध में जो भी आपको दिखाई पड़ता है, उसको बहुत मानना मत, वह झूठा है, ऊपर—ऊपर है। अपने संबंध में भीतर जो दिखाई पड़े, वही सत्य है, वही गहरा है। और जब आपको अपना सत्य दिखाई पड़ेगा, तभी आपको दूसरे का सत्य भी दिखाई पड़ेगा। जिस दिन आपको पता चल जाएगा, मैं नहीं मरूंगा, उस दिन फिर कोई भी नहीं मरेगा आपके लिए। फिर आप कहेंगे कि वस्त्र बदल लिए।
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रामकृष्ण की मृत्यु हुई, तो पता चल गया था कि तीन दिन के भीतर वे मर जाने वाले हैं। जो लोग भी जाग जाते हैं, वे अपनी मौत की घोषणा कर सकते हैं। क्योंकि शरीर संबंध छोड़ने लगता है। कोई एकदम से तो छूटता नहीं, कोई छह महीने लगते हैं शरीर को संबंध छोड़ने में।
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इसलिए मरने के छह महीने पहले, जिसका होश साफ है, वह अपनी तारीख कह सकता है कि इस तारीख, इस घड़ी मैं मर जाऊंगा। तीन दिन पहले तो बिलकुल संबंध टूट जाता है। बस आखिरी धागा जुड़ा रह जाता है। वह दिखाई पड़ने लगता है कि बस अब एक धागा रह गया है, यह किसी भी क्षण टूट जाएगा।
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तो रामकृष्ण को तीन दिन पहले पता हो गया था कि उनकी मृत्यु आ रही है। तो उनकी पत्नी शारदा रोती थी, चिल्लाती थी। रामकृष्ण उसको कहते थे कि पागल, तू रोती—चिल्लाती क्यों है, क्योंकि मैं नहीं मरूंगा। लेकिन शारदा कहती थी, सब डाक्टर कहते हैं, सब प्रियजन कहते हैं कि अब आपकी मृत्यु करीब है ! और वे कहते थे, तू उनकी मानती है या मेरी ! मेरी मानती है या उनकी ! मैं नहीं मरूंगा। मैं रहूंगा यहीं।
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लेकिन शारदा को कैसे भरोसा आए! रामकृष्ण का यह कहना, उनके अपने भीतर के अनुभव की बात है। वे कह रहे हैं कि मैं नहीं मरूंगा। रामकृष्ण को कैंसर हुआ था। कठिन कैंसर था, गले में था और भोजन—पानी सब बंद हो गया था। बोलना भी मुश्किल हो गया था। पर रामकृष्ण ने कहा है कि देख, तुझसे मैं कहता हूं जिसको कैंसर हुआ था, वही मरेगा।
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मुझे कैंसर भी नहीं हुआ था। यह गला रुंध गया है, यह गला बंद हो गया है, यह गला सड़ गया है, यह कैंसर से भर गया है, लेकिन मैं देख रहा हूं कि मैं यह गला नहीं हूं। तो गला मर जाएगा, यह शरीर गल जाएगा, मिट जाएगा, लेकिन मैं नहीं मरूंगा।
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पर हमें कैसे भरोसा आए? क्योंकि हमें अनुभव न हो। हम तो मानते हैं कि हम शरीर हैं। तो जब शरीर मरता है, तो हम मानते हैं कि हम भी मर गए। हमारे जीवन की भ्रांति हमारी मृत्यु की भी भ्रांति बन जाती है।
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अर्जुन को दिखाई नहीं पड़ा, आपको भी दिखाई नहीं पड़ेगा। जिस दिन मृत्यु के द्वार पर आप खड़े हो जाएंगे और देखेंगे कि मर रहा है सब कुछ, तब भी एक आप बाहर खड़े रहेंगे। आप नहीं मर रहे हैं, आपके मरने का कोई उपाय नहीं है। इसलिए अर्जुन बात नहीं कर रहा है अपनी मृत्यु की।
ओशो
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