शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

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*दादू खोजि तहाँ पीव पाइये, सबद ऊपने पास ।
तहाँ एक एकांत है, जहाँ ज्योति प्रकास ॥
दादू खोजि तहाँ पीव पाइये, जहँ बिन जिह्वा गुण गाइ ।
तहँ आदि पुरुष अलेख है, सहजैं रह्या समाइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था । एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ ।
उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा : स्वामी, एक प्रश्न बीस वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूं । कोई उत्तर नहीं मिलता । क्या आप मुझे उत्तर देंगे ?
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स्वामी ने कहा : निश्चित दूंगा ।
उस संन्यासी ने उस राजा से कहा : नहीं, आज तुम खाली नहीं लौटोगे । पूछो ।
उस राजा ने कहा : मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं । ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना । मैं सीधा मिलना चाहता हूं ।
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उस संन्यासी ने कहा : अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर ?
राजा ने कहा : माफ करिए, शायद आप समझे नहीं । मैं परम पिता परमात्मा की बात कर रहा हूं, आप यह तो नहीं समझे कि किसी ईश्वर नाम वाले आदमी की बात कर रहा हूं; जो आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हो ?
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उस संन्यासी ने कहा : महानुभाव, भूलने की कोई गुंजाइश नहीं है । मैं तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं । अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं, सीधा जवाब दें । बीस साल से मिलने को उत्सुक हो और आज वक्त आ गया तो मिल लो ।
राजा ने हिम्मत की, उसने कहा : अच्छा मैं अभी मिलना चाहता हूं मिला दीजिए ।
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संन्यासी ने कहा : कृपा करो, इस छोटे से कागज पर अपना नाम पता लिख दो ताकि मैं भगवान के पास पहुंचा दूं कि आप कौन हैं ।
राजा ने लिखा ---- अपना नाम, अपना महल, अपना परिचय, अपनी उपाधियां और उसे दीं ।
वह संन्यासी बोला कि महाशय, ये सब बाते मुझे झूठ और असत्य मालूम होती हैं जो आपने कागज पर लिखीं ।
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उस संन्यासी ने कहा : मित्र, अगर तुम्हारा नाम बदल दें तो क्या तुम बदल जाओगे ?
तुम्हारी चेतना, तुम्हारी सत्ता, तुम्हारा व्यक्तित्व दूसरा हो जाएगा ?
उस राजा ने कहा : नहीं, नाम के बदलने से मैं क्यों बदलूंगा ? नाम नाम है, मैं मैं हूं ।
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तो संन्यासी ने कहा : एक बात तय हो गई कि नाम तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं । आज तुम राजा हो, कल गांव के भिखारी हो जाओ तो बदल जाओगे ?
उस राजा ने कहा : नहीं, राज्य चला जाएगा, भिखारी हो जाऊंगा, लेकिन मैं क्यों बदल जाऊंगा ? मैं तो जो हूं हूं । राजा होकर जो हूं, भिखारी होकर भी वही होऊंगा । न होगा मकान, न होगा राज्य, न होगी धन- संपति, लेकिन मैं ? मैं तो वही रहूंगा जो मैं हूं ।
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तो संन्यासी ने कहा : तय हो गई दूसरी बात कि राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि राज्य छिन जाए तो भी तुम बदलते नहीं । तुम्हारी उम्र कितनी है ?
उसने कहा : चालीस वर्ष ।
संन्यासी ने कहा : तो पचास वर्ष के होकर तुम दुसरे हो जाओगे ? बीस वर्ष या जब बच्चे थे तब दुसरे थे ?
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उस राजा ने कहा : नही । उम्र बदलती है, शरीर बदलता है लेकिन मैं ? मैं तो जो बचपन में था, जो मेरे भीतर था, वह आज भी है ।
उस संन्यासी ने कहा : फिर उम्र भी तुम्हारा परिचय न रहा, शरीर भी तुम्हारा परिचय न रहा ।
फिर तुम कौन हो ? उसे लिख दो तो पहुंचा दूं भगवान के पास, नहीं तो मैं भी झूठा बनूंगा तुम्हारे साथ । यह कोई भी परिचय तुम्हारा नहीं है ।
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राजा बोला : तब तो बड़ी कठिनाई हो गई । उसे तो मैं भी नहीं जानता फिर ! जो मैं हूं, उसे तो मैं नहीं जानता ! इन्हीं को मैं जानता हूं मेरा होना ।
उस संन्यासी ने कहा : फिर बड़ी कठिनाई हो गई, क्योंकि जिसका मैं परिचय भी न दे सकूं, बता भी न सकूं कि कौन मिलना चाहता है, तो भगवान भी क्या कहेंगे कि किसको मिलना चाहता है ? तो जाओ पहले इसको खोज लो कि तुम कौन हो । और मैं तुमसे कहे देता हूं कि जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो, उस दिन तुम आओगे नहीं भगवान को खोजने । क्योंकि खुद को जानने में वह भी जान लिया जाता है जो परमात्मा है !!
आचार्य रजनीश "ओशो"

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