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*दादू कहि कहि मेरी जीभ रही, सुनि सुनि तेरे कान ।*
*सतगुरु बपुरा क्या करै, जो चेला मूढ़ अजान ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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कामधेनु गुरु क्या कहै, जो सिष निकामी होइ।
रज्जब मिलि रीता रह्या, मंदभागी सिष जोइ ॥
तो गुरु कहता रहता है, कहता रहता है, कहता रहता है, शिष्य अपनी अकर्मण्यता में, अपनी निद्रा में सुनता रहता, सुनता रहता-सुनता ही नहीं। जोड़ बनता नहीं, क्रांति घटती नहीं, आग जलती नहीं।
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*रज्जब मिलि रीता रह्या, मंदभागी सिष जोइ ॥*
रज्जब कहते हैं अगर कोई रीता रह जाए गुरु के पास जाकर, तो मदभागी है, अभागी है। लेकिन बड़ा उल्टा मामला है। अगर तुम गुरु के पास जाकर रीते रह जाओ, तो कहोगे यह गुरु किसी काम का नहीं। हम रीते रह गये, साफ है कि इस गुरु के पास कुछ है नहीं, नहीं तो हमको मिल जाता।
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तुम यह नहीं सोचते जो कि सोचना चाहिए कि कहीं ऐसा तो नहीं है किं मेरी मटकी ही उल्टी रखी, गुरु बरस रहा है और मैं भर नहीं पाता। या मेरी मटकी फूटी है। भर भी जाता है तो सब बिखर जाता है। या मेरी मटकी गंदी है। मेघ से वर्षा होती है स्वच्छ और मेरी मटकी में आते-आते सब गंदगी हो जाती है, सब नाली का कीचड़ मच जाता मटकी साफ करो।
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थोड़ा कृत्य तो करना पड़ेगा मटकी साफ करने में। थोड़ी अकर्मण्यता छोड़ो। मटकी में छेदछाद हों, उन्हें भरो। मटकी उल्टी पड़ी हो, उसे सीधा करो। बस ये तीन काम तुम कर लो, भर जाओगे, निश्चित भर जाओगे।
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फिर तेरी याद दिल की जुल्मत में
इस तरह आयी रंगोनूर लिये
जैसे एक सीमपोश दोशीजा
मकबरे में जला रही हो दिये तुम खुलो तो परमात्मा उतरे। तुम गुरु के लिए खुलो तो गुरु तो उतरे-ही-उतरे, उसके साथ परमात्मा उतर आए। उसके सहारे तुम परमात्मा तक पहुँच जाओ, परमात्मा तुम तक पहुँच जाए।
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फिर तेरी याद दिल की जुल्मत में इस तरह आयी रंगोनूर लिये जरा खुलो, तो रंग भी बदूत है गुरु की याद में और नूर भी बहुत है। रोशनी भी बहुत, उत्सव भी बहुत। फूलों के सब रंग हैं वहाँ, प्रकाश के सब ढंग हैं वहाँ। फिर तेरी याद दिल की जुल्मत' में -और तुम्हारा दिल बिल्कुल अंधकार है, अमावस है....
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इस तरह आयी रंगोनूर लिये
जैसे एक सीमपोश दोशीजा -
जैसे कोई सफेद वस्त्र पहने हुए एक क्वाँरी मकबरे में जला रही हो दिये ऐसी पवित्र क्वाँरी, सफेद कपड़ों में कोई स्त्री मकबरे में दीया जला रही हो, ऐसी ही तुम्हारे भीतर एक पवित्र गंगा बह जाती है। एक क्वाँरी गंगा बह जाती है। अछूते जगत से स्पर्श होता हैं।
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पर तैयारी दिखाओ। मिटने की तैयारी चाहिए। मिटे बिना न कोई कभी हुआ है, न हो सकता है। धन्यभागी हैं वे जो गुरु के पास मिटने को तैयार हैं, क्योंकि सारे जगत का आनंद उनका होगा। इस जगत के सारे उत्सव उनके होंगे। उनकी अमावस समाप्त हो जाएगी। और उनके जीवन में पूर्णिमा का उदय होगा। पूरा चाँद तुम्हारा है, सारा आकाश तुम्हारा है, लेकिन हकदार तुम तभी हो पाओगे जब तुम अपने अहंकार से बिल्कुल खाली हो जाओ। उस अहंकार को चढ़ा देने का नाम ही शिष्यत्व है।
आज इतना ही।
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