शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

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*विरह बिचारा ले गया, दादू हमको आइ ।*
*जहं अगम अगोचर राम था,*
*तहँ विरह बिना को जाइ ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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दीन दुःखी दीदार बिन, रज्जब धन बेहाल ।
दरस दया करि दीजिये, तौ निकसै सब साल ॥
मेरे सारे कष्ट समाप्त हो जाएँ, मेरे सारे काँटे निकल जाएँ, मेरी पीड़ा का अंत आ जाए - दरस दया करि दीजिए । खयाल करना, मूल्यवान शब्द है- दया। रज्जब कह रहे हैं कि मेरी कोई पात्रता नहीं है, यह कोई मैं दावा नहीं कर रहा हूँ कि मैं पात्र हूँ, आओ, आना पड़ेगा। खयाल करना, त्यागी तपस्वी पात्रता का दावा करता है।
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वह कहता है, इतने मैंने उपवास किए, इतने व्रत किए, इतने नियम साधे, आओ, आना पड़ेगा। भक्त कहता है कि मेरे किए क्या होगा, मेरा सब किया दो कौड़ी का है, तुम्हारी दया हो तो आना हो। मैं रो सकता हूँ, मैं पुकार सकता हूँ, मैं तड़फ सकता हूँ, मैं चातक की भाँति तुम पर नजर लगाए रख सकता हूँ और मैं पपीहे की भाँति प्राण छोड़ सकता हूँ पुकार-पुकार पिव-पिव-पिव, मेरी और कोई पात्रता नहीं है, तुम्हारी दया का ही प्रवाह मेरी तरफ हो जाए तो ही तुम मुझे मिल सकते हो।
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भक्ति और योग का यह बुनियादी भेद है। योग की आस्था प्रयास पर है- चेष्टा, साधना। भक्ति की आस्था प्रसाद पर है-उसकी अनुकंपा। दरस दया करि दीजिए, तो निकसै सब साल।
एक गिरया है मुस्कराना भी
मुस्कराकर भी हमने देखा है
हम तही दामनी पै नाजाँ हैं
तेरी चश्मे-करमने देखा है
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और जब भक्त को परमात्मा की कृपा मिलती है, तब भक्त कहता है-हम अब खुश हैं अपने उस दुःख पर - एक गिरया है मुस्कराना भी मुस्कराकर भी हमने देखा है हम तही दामनी पै नाजाँ हैं..... लेकिन अब तो हम अपने रिक्त हाथों पर, अपने खाली दामन पर नाज से भरे हैं : हम तही दामनी पै नाजाँ हैं तेरी चश्मे-करमने देखा है क्योंकि जितना हम रोए, उतनी ही तेरी नजर हम पर पड़ी। जितना हमने पुकारा, उतनी तेरी नजर हम पर पड़ी। जितने हम अपात्र थे, उतनी तेरी दया हमें मिली।
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हम तही दामनी पै नाजाँ हैं
तेरी चश्मे-करमने देखा है
तुझे हमने पाया रोकर, पुकारकर। जब भक्त को भगवान मिल जाता है तब तो भक्त कहता है- आ हा ह ! धन्य थे वे दिन जब मैं रोया ! धन्य थीं वे रातें जब विरह में तड़फा - ज्यों मछली बिन नीर। लौटकर पीछे की यात्रा बड़ी मधुमय हो जाती है। सब आँसू फूल हो जाते हैं। सब रुदन गीत हो जाता है। सब पीड़ाएँ अपूर्व संपदाएँ मालूम होने लगती हैं।
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मगर जब पीड़ा से गुजरते हैं, तब बड़ी अड़चन होती है। और खयाल रखना, इस दुनिया में बहुत लोग हैं जो तुम्हारी पीड़ा को सांत्वना देने का उपाय करेंगे। उनसे सावधान रहना। क्योंकि पीड़ा की गहनता से परमात्मा मिलता है। अगर किसी ने सांत्वना दे दी, दुःख-दर्दी मिल गए तुम्हें और सहानुभूति दिखानेवाले मिल गए और उन्होंने तुम्हें समझा-बुझाकर ठीक कर दिया, उन्होंने तुम्हें परमात्मा से वंचित कर दिया।
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*यह पीड़ा ऐसी नहीं है कि इसका इलाज करवा लेना। यह दर्द ऐसा नहीं है कि जिसकी दवा खोजो। यह दर्द ऐसा है, जो बढ़ जाए तो स्वयं ही दवा हो जाता है।*
ओशो

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