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*कर्मों के वश जीव है, कर्म रहित सो ब्रह्म ।*
*जहँ आत्म तहँ परमात्मा, दादू भागा भ्रम ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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गौतम बुद्ध के जीवन में उन्होंने अपने पुराने जन्मों की बहुत सी कहानियां कही हैं। उनमें एक कहानी बहुत ही प्रीतिकर है। तब तक वे स्वयं जागे नहीं थे, बुद्ध नहीं हुए थे। लेकिन कोई बुद्ध हो गया था और उन्हें खबर मिली। वे उसके दर्शन को गए। उन्होंने झुककर उसके चरण छुए, जो कि पूरब की अदभुत देन है ! पूरब ने बहुत कुछ दुनिया को दिया है जिसकी कोई कीमत नहीं करता।
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उस तरह के आदमी को यूनान में जहर दिया जाता है, जूदिया में फांसी पर लटकाया जाता है, अरब में टुकड़े-टुकड़े करके काट दिया जाता है हिंदुस्तान ने बहुत कुछ दुनिया को दिया है जो अदभुत है। यहां अंधे आदमी को भी इतनी सहनशीलता दी है कि वह आंखवाले के पैर छूने को राजी है और इसमें अपमान अनुभव नहीं करता बल्कि गौरव अनुभव करता है। अनुभव करता है कि मैं महा महिमामंडित हूं कि एक आंखवाले आदमी के पैर छूने का मुझे अवसर मिला। नहीं सही मेरी आंखें मगर कोई आंखवाला था जिसके मैंने पैर तो छुए। यह भी क्या कम है ?
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बुद्ध ने पैर छुए और जैसे ही वे खड़े हुए तो हैरान हो गए। वह व्यक्ति, वह महापुरुष जो जाग चुका था वह झुका और उसने इस सोए हुए आदमी के पैर छुए। बुद्ध ने कहा, आप यह क्या करते हैं? यह कैसा पाप आप मेरे ऊपर थोप रहे हैं। आप जागृत हैं मैं आपके पैर छुऊं यह मेरा सौभाग्य है। लेकिन आप मेरे पैर छूकर मुझे किस नर्क में ढकेल रहे हैं।
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उस बुद्ध पुरुष ने कहा था, नर्क में नहीं ढकेल रहा हूं। कल तक मैं भी तुम्हारी तरह सोया हुआ था। आज जाग गया हूं। आज तुम सोए हुए हो, कल तुम भी जाओगे। मुझमें और तुममें बुनियादी रूप से कोई अंतर नहीं है। जो अंतर है बहुत ऊपरी है, बहुत मामूली है। वह अंतर मामूली है यही बताने के लिए मैं तुम्हारे पैर छू रहा हूं। मैं तुम्हारे अंधेपन के पैर नहीं छू रहा हूं; मैं तुम्हारे भविष्य के, जब तुम भी जाग जाओगे उस स्वर्ण दिन के, उस स्वर्ण प्रभात के पैर छू रहा हूं। और इसलिए भी ताकि तुम्हें याद रहे कि जाग कर भूल मत जाना कि सिर्फ अंधे ही तुम्हारे पैर छू सकते हैं। तुम्हें भी उनके पैर छूने हैं। तुम भी उनकी ही जमात के हिस्से हो। इससे क्या फर्क पड़ता है कि कोई घड़ी भर पहले जाग गया और कोई घड़ी भर बाद जाग गया। इस अनंत काल काल में घड़ियों में गिनती नहीं होती। इसलिए मैं हम का ही उपयोग जारी रखूंगा।
ओशो, कोपले फिर फ़ूट आई--प्रवचन--01
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