रविवार, 28 जुलाई 2024

= १५ =

*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू मन ही मरणा ऊपजै, मन ही मरणा खाइ ।*
*मन अविनासी ह्वै रह्या, साहिब सौं ल्यौ लाइ ॥*
=============
*साभार ~ @Subhash Jain*
.
*सतयुग और कलयुग समसामयिक हैं*
सतयुग और कलियुग एक-दूसरे के पीछे पंक्ति में नहीं खड़े हैं, कि पहले सतयुग आया, फिर कलियुग आया। सतयुग और कलियुग समसामयिक हैं, कंटेंपरेरी हैं - ऐसे ही जैसे रात और दिन साथ-साथ हैं; अंधेरा-उजाला साथ-साथ हैं; बुराई-भलाई साथ-साथ हैं।
.
तुमने सदा ऐसा ही सुना है कि पहले सतयुग था, अच्छे दिन थे, अब बुरे दिन हैं। वह धारणा मौलिक रूप से गलत है। पहले भी ऐसा था; आज भी वैसा ही है। पहले भी बुरे होने की संभावना थी; आज भी बुरे होने की संभावना है। पहले भी भले होने की संभावना थी; आज भी द्वार बंद नहीं हो गए हैं।
.
और ध्यान रहे, अधिक लोग तो सदा ही कलियुग में रहे हैं। बुद्ध और महावीर समझाते हैं लोगों को : 'चोरी न करो, बेईमानी न करो, ईर्ष्या न करो, हिंसा न करो।’ सुबह से सांझ तक समझाते हैं; चालीस साल ज्ञान की उपलब्धि के बाद यही समझाया। किनको समझाते हैं ? सतयुग था ? तो जो लोग चोरी करते ही नहीं थे, उनको बुद्ध समझाते हैं चोरी मत करो ? जो लोग हिंसा करते ही नहीं थे, उनको बुद्ध समझाते हैं कि हिंसा मत करो ? तो बुद्ध पागल रहे होंगे। ईमानदारों को कोई नहीं समझाता कि ईमानदार हो जाओ। बेईमानों को समझाना होता है।
.
महावीर भी वही कर रहे हैं सुबह से सांझ तक। पुरानी से पुरानी किताब वेद भी वही कर रही है। तो वेद के दिन में भी चोर थे, और साधुओं से ज्यादा रहे होंगे; बेईमान थे, और ईमानदारों से ज्यादा रहे होंगे। अगर भले ही लोग होते, शैतानियत होती ही न, तो शास्त्रों की भी कोई जरूरत न थी। शास्त्र किसके लिए लिखे जाते हैं ?
.
सद्-उपदेश किसके लिए हैं ?
तो मैं तुम्हारी समय की धारणा में एक नया विचार आरोपित करना चाहता हूं: सतयुग सदा है; कलियुग भी सदा है। तुम जो चाहो चुन लो। तुम अभी चाहो तो सतयुग में रह सकते हो। तुम सत् हुए तो सतयुग में प्रविष्ट हो गए। तुम असत् हुए तो कलयुग में प्रविष्ट हो गए। तुमने अंधेरे में दोस्ती बांधी तो कलियुग में रहोगे। और तुमने रोशनी से दोस्ती बांध ली तो सतयुग में रहोगे।
सतयुग और कलियुग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जो मरजी हो, उसमें जी लो। कलियुग को दोष मत दो।
ओशो,
अजहुं चेत गंवार, प्रवचन -14

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें