रविवार, 28 जुलाई 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १२९/१३२*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १२९/१३२*
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कहि जगजीवन खेजड़ौ२, पीपल३ एकै ठांम ।
सब कोई कहै सही पलौ, सेवग स्वामी रांम ॥१२९॥
{२.खेजड़ौ=खेजड़ा(शमी) वृक्ष} {३.पीपल=पिप्पल(अश्वस्थ) वृक्ष}
संतजगजीवन जी कहते हैं जैसे पीपल के साथ शमी भी पूजनीय है वैसे ही प्रभु सेवक भी प्रभु के साथ पूजनीय होते हैं ।
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पर परमेसुर रांम हरि, ताणि पांचौ घरि आंणि ।
कहि जगजीवन जगत गुरु, जोग जगाया जांणि ॥१३०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु पांचों ज्ञान इन्द्रियों को भटकने मत दो उन्हें परमात्मा रुपी स्मरण घर में लगाओ । इसे ही प्रभु से योग हुआ जाने ।
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कहि जगजीवन उद्दिमी४, रांम भगति का साज५ ।
निराकार सूं मिलि रहै, करि लै पूरा काज६ ॥१३१॥
(४. उद्दिमी=उद्यमी=उद्यौग करने वाला) {५. साज=साधन(उपाय)}
{६. काज=कार्य(ईप्सित कर्म)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम भक्ति का उद्यम ही सार्थक है । निराकार परमात्मा से मिलना ही पूर्ण कार्य है उसी में सत्य है ।
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कहि जगजीवन बुहारी७, भवन बुहारै नारि ।
पीवै अमीरस प्रीति सौं, अनभै अरथ८ बिचारि ॥१३२॥
(७. बुहारी=झाडू) (८. अणभै अरथ=चिन्तन मनन से प्राप्त ज्ञान)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मन रुपी भवन में ज्ञान रुपी झाड़ू से बुहारिये । ऐसा करने से आत्मा मनन चिंतन से आनंद रस पान करती है जो अनुभव से प्राप्त होता है ।
(क्रमशः)

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