सोमवार, 15 जुलाई 2024

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*दादू काम गाय के दूध सौं, हाड़ चाम सौं नांहि ।*
*इहिं विधि अमृत पीजिये, साधु के मुख मांहि ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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मैंने सुना है, सूफियों में एक कहानी है कि एक पहाड़ के पास एक झील है। और उस झील के पास जब भी कोई साधक पहुंच जाता है और आग्रह करता है झील से, और आग्रह अगर वस्तुतः प्रामाणिक होता है, तो झील से उत्तर मिलते हैं।
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एक फकीर वर्षों की तलाश के बाद अंततः उस झील के पास पहुंच गया। और उसने चिल्ला कर जोर से पूछा कि मेरा एक ही सवाल है: जीवन क्या है? झील चुप रही। लेकिन वह पूछता ही गया। कहते हैं तीन दिन अहर्निश, रात और दिन उसने एक कर डाले। एक ही सवाल कि जीवन क्या है ? आखिर झील के देवता को भी झुकना पड़ा। और उसने कहा कि तेरी निष्ठा पूरी है। तू कोई साधारण कुतूहल से नहीं आया। तू साधारण जिज्ञासु भी नहीं है, तू मुमुक्षु है; इसलिए तेरे प्रश्न का उत्तर हम देते हैं: जीवन एक वीणा है।
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उस आदमी ने कहा, और पहेलियां अब नहीं चाहता। सीधा-सीधा उत्तर दो। मैं कोई संगीतज्ञ नहीं हूं। वीणा मैंने अपने जीवन में अभी तक देखी भी नहीं। सुना है नाम; लेकिन मुझे जीवन का भी पता नहीं, वीणा का भी पता नहीं। अब यह एक और उलझन हो गई। अभी मैं जीवन को हल करता रहा, अब वीणा का भी पता लगाऊं! तुम मुझे सीधा-सीधा ही कह दो।
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झील ने कहा, उत्तर दे दिया गया है। तो उस आदमी ने कहा, थोड़े संकेत दो जिससे कि मैं रास्ता खोजूं। तो झील से उत्तर आया कि तू गांव में जा और पहली तीन दुकानों पर गौर से देख। और जो भी तू पाए, लौट कर उत्तर दे।
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वह आदमी गया। उसने पहली दुकान पर देखा, वहां कुछ भी न था, लोहे-लंगर की दुकान थी, धातुओं के अलग-अलग तरह के रूप-रंग के ढेर लगे थे। वह कुछ समझा नहीं कि जीवन से इसका क्या लेना-देना ! दूसरी दुकान पर गया। वह एक तारों की दुकान थी। वहां भी उसको समझ में नहीं आया कि जीवन से तारों का क्या लेना-देना ? तीसरी दुकान एक बढ़ई की दुकान थी।
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वह बड़ा नाखुश लौटा। उसने सोचा कि इससे तो हम पहले ही बेहतर थे। इस झील से पूछने के पहले ही बेहतर थे। कम से कम इस तरह की मूढ़ता तो दिमाग में न थी। इससे जीवन का क्या लेना-देना ? यह तो ज्ञान न मिला और अज्ञानी हो गए। लौट कर नाराज आया और उसने झील से कहा कि यह-यह मैंने देखा। पर इससे जीवन का क्या संबंध है ?

झील ने पुनः कहा कि जीवन एक वीणा है। अब तू इस सूत्र को पकड़ ले और इसकी खोज कर। वर्षों बीत गए। वह आदमी करीब-करीब भूल ही गया वह खोज--जीवन का वीणा होना। एक दिन अचानक एक बगीचे के पास से गुजरते वक्त उसने किसी को वीणा बजाते सुना। वह स्वरलहरी उसे खींच ली। वह खिंचा हुआ जादू के वश बगीचे के भीतर पहुंच गया।
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कोई कलाकार वीणा बजा रहा था। साधक को पहली दफा दिखाई पड़ा कि वही तार हैं जो दुकान पर पड़े थे। वही धातुएं हैं जो दुकान पर पड़ी थीं, वीणा में लग गईं। और उस बढ़ई ने भी काम किया है। लकड़ी का भी इंतजाम है।
आज उसे सूत्र साफ हुआ। आज उसे साफ हुआ कि जीवन एक वीणा है। लकड़ी भी है, तार भी हैं, धातुएं भी हैं; अलग-अलग पड़े हैं। कोई संगीत पैदा नहीं होता। तीनों जुड़ जाएं, एक ढंग में बैठ जाएं, तालमेल आ जाए, तो संगीत उठ सकता है। इतना अदभुत संगीत उठ सकता है--निराकार ! इतना प्राणों को मोहित कर लेने वाला संगीत उठ सकता है ! ऐसी जादूभरी रहस्यपूर्ण घटना घट सकती है !
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मैं भी तुमसे यही कहता हूं: जीवन एक वीणा है। लेकिन तुम्हें अपनी वीणा जमानी है। दूसरों की नकल मत करना। उन्हें अपनी वीणा जमानी है। वीणाएं बहुत तरह की हैं। और हरेक व्यक्ति के पास अपने तरह की वीणा है और अपने ही तरह का छिपा हुआ संगीत है।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः।
आचार्य रजनीश "ओशो"
*सबै सयाने एक मत-08*

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