मंगलवार, 6 अगस्त 2024

"हाथ लगाकर देखो"

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*दादू फिरता चाक कुम्हार का, यों दीसे संसार ।*
*साधुजन निहचल भये, जिनके राम अधार ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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श्रीरामकृष्ण श्रीयुत राखाल हालदार के साथ बातचीत कर रहे हैं ।
हालदार - डाक्टर श्रीनाथ वेदान्तचर्चा किया करता है - योगवाशिष्ठ पढ़ता है ।
श्रीरामकृष्ण - संसारी होकर 'सब स्वप्नवत् है' यह मत अच्छा नहीं ।
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एक भक्त - कालिदास नाम का वह जो आदमी है, वह भी वेदान्तचर्चा किया करता है । परन्तु मुकदमेबाजी में घर की लुटिया तक उसने बेच डाली !
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - सब माया भी है और उधर मुकदमेबाजी भी होती है ! (राखाल से) जनाईवाले मुकर्जियों ने पहले बड़ी लम्बी-लम्बी बातें की थी, फिर अन्त में खूब समझ गये । मैं अगर अच्छा रहता तो उनसे कुछ देर और बातचीत करता । क्या 'ज्ञान-ज्ञान' की डींग मारने से ही ज्ञान हो जाता है ?
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हालदार - ज्ञान बहुत देखा है । कुछ भक्ति हो तो जी में जी आये । उस दिन मैं एक बात सोचकर आया था । उसकी आपने मीमांसा कर दी ।
श्रीरामकृष्ण - (आग्रह से) - वह क्या है ?
हालदार - जी, यह बच्चा आया तो आपने कहा कि यह जितेन्द्रिय है ।
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श्रीरामकृष्ण - हाँ, हाँ, उसके (छोटे नरेन्द्र के) भीतर विषयबुद्धि का लेशमात्र भी नहीं है । वह कहता है, 'मुझे नहीं मालूम कि काम किसे कहते हैं ।'
(मणि से) "हाथ लगाकर देखो, मुझे रोमांच हो रहा है ।" काम नहीं है, इस शुद्ध अवस्था की याद करके श्रीरामकृष्ण को रोमांच हो रहा है ।
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राखाल हालदार बिदा हो गये । श्रीरामकृष्ण भक्तों के साथ अब भी बैठे हुए हैं । एक पगली उन्हें देखने के लिए बड़ा उपद्रव मचाया करती है । वह मधुरभाव की उपासना करती है । बगीचे में प्रायः आया करती है । आकर एकाएक श्रीरामकृष्ण के कमरे में घुस आती है । भक्तगण मारते भी हैं, परन्तु इससे भी वह मौका नहीं चूकती ।
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शशि - अबकी बार अगर पगली दीख पड़ी तो धक्के मारकर हटा दूँगा ।
श्रीरामकृष्ण - (करुणापूर्ण स्वर से) - नहीं, नहीं, आयगी तो फिर चली जायगी ।
राखाल - पहले-पहल इनके पास अगर और पाँच आदमी आते थे तो मुझे एक तरह की ईर्ष्या होती थी । उन्होंने कृपा करके अब मुझे समझा दिया है कि वे मेरे भी गुरु हैं और संसार के भी गुरु हैं । वे केवल हमारे लिए थोड़े ही आये हुए हैं ?
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शशि - माना कि हमारे लिए ही नहीं आये, परन्तु बीमारी के समय आकर उपद्रव मचाना, यह क्या बात है ?
राखाल - उपद्रव तो सभी करते हैं । क्या सभी उनके पास सच्चे भाव से आये हुए हैं ? क्या हम लोगों ने उन्हें कष्ट नहीं दिया ? नरेन्द्र आदि, सब पहले कैसे थे ? - कितना तर्क करते थे ?
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शशि - नरेन्द्र मुख से जो कुछ कहता था, उसे कार्य द्वारा पूरा भी उतार देता था ।
राखाल - डाक्टर सरकार ने उन्हें न जाने कितनी बातें कही हैं ! - देखा जाय तो दूध का धोया कोई नहीं है ।
श्रीरामकृष्ण - (राखाल से सस्नेह) - तू कुछ खायगा ?
राखाल - नहीं, फिर खा लूँगा ।
श्रीरामकृष्ण मणि की ओर संकेत कर रहे हैं कि वे आज यहीं प्रसाद पायें ।
राखाल - पाइये न, जब वे कह रहे हैं ।
(क्रमशः)

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