सोमवार, 12 अगस्त 2024

*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १४८/१५०*

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*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
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*४३. गूढ़ अर्थ कौ अंग १४८/१५०*
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ए ऊँकारि बिचारि हरि, अरथ भेद सब पाइ ।
कहि जगजीवन रांम रटि, रांम हि मांहि समाइ ॥१४८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि एक ओम कार का विचार करें । उसमें सब अर्थ व भेद मिल जायेंगे । संत कहते हैं कि राम रटने से राम में ही समाते हैं ।
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अण अदेख५ देख्या कहै, रांम भगति भै भीत ।
कहि जगजीवन ए हरि सौदा, सिर के साटै६ सीत ॥१४९॥
(५. अण अदेख=न देखा हुआ) (६. साटै=बदले में)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि बिना जाने ही जाना हुआ कहते हैं, व राम भक्ति से कतराते रहते हैं । संत कहते हैं कि भक्ति तो समर्पण भाव से है उसमे जान भी लग जाये तो विचारें की मुफ्त में मिली है ।
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बेदन मांहै बिराजै, मंदिर करै प्रगास ।
निस सोवै दिन क्रित करै, सु कहि जगजीवनदास ॥१५०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु ज्ञान(वेद) में भी हे पीड़ा में भी है । जिससे मन मन्दिर प्रकाशित होता है । जो रात में प्रभु भाव से शयन व दिन में प्रभु भाव से संसारिक कृत्य करता है ।
इति गूढ अर्थ कौ अंग संपूर्ण ॥४३॥
(क्रमशः)

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