🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*श्रद्धेय श्री @महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी, @Ram Gopal Das बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ @Premsakhi Goswami*
.
*४४. रस कौ अंग ५/८*
.
रसभोगी हरि रस पीवै, बिषभोगी बिष खाइ ।
कहि जगजीवन सोई लहै, जा कौं जेइ सुहाइ ॥५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आनंदरस पान करने वाला तो हरि स्मरणरुपी यस पीयेगा । और विष पान करनेवाले विषयीविष पान करेंगे ।जिसकी जैसी रुचि होगी वह वैसा ही आचरण करेगा ।
.
रसभोगी हरि रस पीवै, हरि रस की मांही प्यास ।
विषभोगी बिषरस खुसी, सु कहि जगजीवनदास ॥६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि रसपान करनेवाले जीवात्माओं को हरि भक्ति की ही आस रहती है वे उसी के लिये तृषित होते हैं । और विषभोगी जन आनंद से विषयरुपी विष का पान करते हैं ।
.
रसभोगी हरि रस पीवै, हरि रस सौं अति नेह ।
कहि जगजीवन विषै रस, भूमि न परसै देह ॥७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि रस का भोग करनेवाले तो प्रभु नाम का प्याला पीते हैं उसी से स्नेह रखते हैं । जहाँ विषयविष होता है वे उस भूमि का स्पर्श भी नहीं करते हैं ।
.
रसभोगी हरि रस पिवै, हरि रस मांही सुहाइ३ ।
कहि जगजीवन विषै रस, दूरि करै हरि ताहि ॥८॥
(३. सुहाइ=रुचिकर लगे)
संतजगजीवन जी कहते सहै कि रस पान करनेवाले तो प्रभु भक्ति में ही आनंदपूर्वक रहते हैं । और अपने जीवन से विषय रुपी रस को दूर रखते हैं ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें