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*निर्मल नाम विसार कर, दादू जीव जंजाल ।*
*नहीं तहाँ तैं कर लिया, मनसा मांहीं काल ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(५)प्रवृत्ति या निवृत्ति ? हीरानन्द के प्रति उपदेश*
हीरानन्द श्रीरामकृष्ण के पैरों पर हाथ फेर रहे हैं । पास ही मास्टर बैठे हैं । लाटू तथा अन्य दो-एक भक्त कमरे में आते-जाते हैं । आज शुक्रवार है, २३ अप्रैल, १८८६ । दिन के ११२-१ बजे का समय होगा । हीरानन्द ने आज यहीं भोजन किया है । श्रीरामकृष्ण की बड़ी इच्छा थी कि हीरानन्द यहीं रहें ।
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हीरानन्द श्रीरामकृष्ण के पैरों पर हाथ फेरते हुए उनसे वार्तालाप कर रहे हैं । वैसी ही मधुर बातें, मुख हास्य और प्रसन्नता से भरा हुआ, - जैसे बालक को समझा रहे हों । श्रीरामकृष्ण अस्वस्थ हैं, डाक्टर सदा ही उन्हें देख रहे हैं ।
हीरानन्द - आप इतना सोचते क्यों हैं ? डाक्टर पर विश्वास करके निश्चिन्त हो जाइये । आप बालक तो हैं ही ।
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श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - डाक्टर पर विश्वास कैसे होगा ? सरकार(डाक्टर) ने कहा है, बिमारी अच्छी न होगी ।
हीरानन्द - तो इतनी चिन्ता क्यों करते हैं ? जो कुछ होना है, होगा ।
मास्टर - (हीरानन्द से, एकान्त में) - ये अपने लिए कुछ नहीं सोच रहे हैं । इनकी शरीर-रक्षा भक्तों के लिए है ।
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गर्मी जोरों की हो रही है । और फिर दोपहर का समय । खस की टट्टी लगायी गयी है । हीरानन्द उठकर टट्टी ठीक कर रहे हैं । श्रीरामकृष्ण देख रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - (हीरानन्द से) - तो पाजामा भेज देना ।
हीरानन्द ने कहा है कि उसके देश का पाजामा पहनकर श्रीरामकृष्ण को आराम होगा । इसीलिए श्रीरामकृष्ण उन्हें पाजामा भेज देने की याद दिला रहे हैं ।
हीरानन्द का भोजन ठीक नहीं हुआ । चावल अच्छी तरह पके नहीं थे ।
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श्रीरामकृष्ण को सुनकर बड़ा दुःख हुआ । बार बार उनसे जलपान करने के लिए कह रहे हैं । इतना कष्ट है कि बोल भी नहीं सकते, परन्तु फिर भी बार बार पूछ रहे हैं ।
फिर लाटू से पूछ रहे हैं, 'क्या तुम लोगों को भी वही चावल दिया गया था ?'
श्रीरामकृष्ण कमर में कपड़ा नहीं सम्हाल सकते । प्रायः बालक की तरह दिगम्बर होकर ही रहते हैं । हीरानन्द के साथ दो ब्राह्म भक्त आये हुए हैं; इसीलिए एक-आध बार श्रीरामकृष्ण धोती को कमर की ओर खींच रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - (हीरानन्द से) - धोती के खुल जाने पर क्या तुम लोग असभ्य कहते हो ?
हीरानन्द - आपको इससे क्या ? आप तो बालक हैं ।
श्रीरामकृष्ण (एक ब्राह्म भक्त प्रियनाथ की ओर उँगली उठाकर) - वे ऐसा कहते हैं ।
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हीरानन्द अब बिदा होंगे । दो-एक रोज कलकत्ते में रहकर वे फिर सिन्ध देश जायेंगे । वे वहीं काम करते हैं । दो अखबारों के सम्पादक हैं । १८८४ ई. से लगातार चार साल तक उन्होंने सम्पादन कार्य किया था । उनके पत्रों के नाम थे - सिन्ध टाइम्स(Sind Times) और सिन्ध-सुधार(Sind Sudhar ) । हीरानन्द ने १८८३ ई. में बी. ए. की उपाधि प्राप्त की थी ।
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श्रीरामकृष्ण - (हीरानन्द से) - वहाँ न जाओ तो ?
हीरानन्द (सहास्य) - वहाँ और कोई मेरा काम करनेवाला नहीं है । मुझे तो वहाँ नौकरी करनी पड़ती है ।
श्रीरामकृष्ण - क्या वेतन पाते हो ?
हीरानन्द - इन सब कामों में वेतन कम है ।
श्रीरामकृष्ण – कितना ?
हीरानन्द हँस रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - यहीं रहो न ।
हीरानन्द चुप हैं ।
श्रीरामकृष्ण - काम करके क्या होगा ?
हीरानन्द चुप हैं ।
थोड़ी देर और बातचीत करके हीरानन्द बिदा हुए ।
श्रीरामकृष्ण - कब आओगे ?
हीरानन्द - परसों सोमवार को देश जाऊँगा । सोमवार को सुबह आकर दर्शन करूँगा ।
(क्रमशः)
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