बुधवार, 8 जनवरी 2025

*चौरंगीनाथजी की पद्य टीका*

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*दादू माया बैरिण जीव की,*
*जनि कोइ लावे प्रीति ।*
*माया देखे नरक कर, यह संतन की रीति ॥*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*चौरंगीनाथजी की पद्य टीका*
*इन्दव-*
*माँग हुती सुत की नृप व्याहत,*
*रूपवती अति बुद्धि चलाई ।*
*खेलत गैंद गई दुरि ता घर,*
*दौर गयो तिस लेनहि जाई ॥*
*देखत रूप अनूप महा अति,*
*बाँह गही संग मोहि कराई ।*
*हाथ हि जोड़ कहै मुख सूखत,*
*बात अयोग्य कहो जनि माई ॥४२३॥*
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लूणा के पति की माँग पूर्णमल की थी किन्तु पूर्णमल नट गया कि मैं विवाह नहीं करूँगा । तब राजा शालिवाहन ने ही लूणा के साथ विवाह कर लिया । लूणा अति रूपवती थी । इससे पूर्णमल के सुन्दर रूप को देख कर उससे रति संग का सुख लेने के लिए अपनी बुद्धि पूर्णमल की ओर लगाई ।
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एक दिन दैवयोग से गैंद लूणा के महल में जाकर किसी स्थान में छिप गई । तब उसको लेने के लिए माता के महल में स्वयं पूर्णमल ही दौड़ कर गये ।
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उस समय पूर्णमल का अति महान् अनुपम रूप देख कर एकान्त होने से लूणा कामवश हो गई और पूर्णमल की भुजा पकड़ कर बोली- "मुझ से संग करो ।"
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यह सुनकर पूर्णमल का मुख सूख गया, वह हाथ जोड़कर बोला- "माताजी ! यह अयोग्य बात आप क्यों कह रही हो ?"॥
(क्रमशः)

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