शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

*उपाय–अभ्यासयोग*

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*तहँ भाव प्रेम की पूजा होइ,*
*जा पर किरपा जानै सोइ ।*
*कृपा करि हरि देइ उमंग,*
*तहँ जन पायो निर्भय संग ॥*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(२)उपाय – अभ्यासयोग*
ब्राह्म भक्तों के साथ केशव आये हैं । श्रीरामकृष्ण आँगन में बैठे हैं ।
केशव ने आकर अति भक्ति भाव से प्रणाम किया । वे श्रीरामकृष्ण की बायीं ओर बैठे । दाहिनी ओर राम बैठे हैं ।
थोड़ी देर में भागवत-पाठ होने लगा । पाठ के बाद श्रीरामकृष्ण बातचीत कर रहे हैं । आँगन के चारों ओर गृहस्थ भक्तगण बैठे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - (भक्तों के प्रति) - संसार का काम बड़ा कठिन है । खाली गोल-गोल घूमने से सिर में चक्कर आकर मनुष्य बेहोश हो जाता है, परन्तु खम्भा पकड़कर गोल-गोल चक्कर काटने से फिर गिरने का भय नहीं रहता । काम करो, परन्तु ईश्वर को न भूलो ।
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"यदि कहो, 'यह तो बड़ा कठिन है, फिर उपाय क्या है ?' - तो उपाय है अभ्यासयोग । उस देश(कामारपुकुर) में भड़भूजों की औरतों को देखा; - वे एक ओर तो चिउड़ा कूट रही हैं, हाथ पर मूसल गिरने का भय है, फिर दूसरी ओर बच्चे को दूध पिला रही हैं, और फिर खरीददार के साथ बात भी कर रही हैं; कह रही हैं, 'देखो, तुम्हारे ऊपर इतने पैसे बाकी हैं, सो दे जाना ।'
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"व्यभिचारिणी औरत गृहस्थी के सभी कामों को करती है, परन्तु मन सदा उप-पति की ओर रहता है ।
"परन्तु मन की ऐसी अवस्था होने के लिए थोड़ी साधना चाहिए, बीच-बीच में निर्जन में जाकर भगवान को पुकारना चाहिए । भक्ति प्राप्त करके फिर कर्म किया जा सकता है । ऐसे ही यदि कटहल काटने जाओ तो हाथ में चिपक जायगा, पर हाथ में तेल लगाकर कटहल काटने से फिर नहीं चिपकेगा ।"
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अब आँगन में कीर्तन हो रहा है । श्री त्रैलोक्य गा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण आनन्द से नृत्य कर रहे हैं। साथ-साथ केशव आदि भक्तगण भी नाच रहे हैं । जाड़े का समय होने पर भी श्रीरामकृष्ण के शरीर में पसीना झलक रहा है ।
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कीर्तन के बाद जब सब लोग बैठ गये तो श्रीरामकृष्ण ने कुछ खाने की इच्छा प्रकट की । भीतर से एक थाली में मिठाई आयी । केशव उस थाली को पकड़े रहे और श्रीरामकृष्ण खाने लगे । खाना होने पर केशव जलपात्र से श्रीरामकृष्ण के हाथों में पानी डालने लगे और फिर अँगौछे से उनका मुँह पोंछ दिया । उसके बाद पंखा झलने लगे ।
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श्रीरामकृष्ण - (केशव आदि के प्रति) - जो लोग गृहस्थी में रहकर उन्हें पुकार सकते हैं, वे वीर भक्त हैं । सिर पर बीस मन का बोझा है, फिर भी ईश्वर को पाने के लिए चेष्टा कर रहा है, - इसी का नाम है वीर भक्त ।
"तुम कहोगे, यह बड़ा कठिन है । पर क्या ऐसी कोई कठिन बात है, जो भगवान की कृपा से नहीं होती ? उनकी कृपा से असम्भव भी सम्भव हो जाता है । हजार वर्ष से अँधेरे कमरे में यदि प्रकाश लाया जाय तो क्या उजाला धीरे-धीरे होगा ? कमरा एकदम आलोकित हो जायगा ।"
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ये सब आशाजनक बातें सुनकर केशव आदि गृहस्य भक्तगण आनन्दित हो रहे हैं ।
केशव - (राजेन्द्र मित्र के प्रति, हँसते हुए) - यदि आपके घर पर एक दिन ऐसा उत्सव हो तो बहुत अच्छा है ।
राजेन्द्र - बहुत अच्छा, यह तो उत्तम बात है । राम, तुम पर सब भार रहा ।
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अब श्रीरामकृष्ण को ऊपर के कमरे में ले जाया जा रहा है । वहाँ पर वे भोजन करेंगे । मनोमोहन की माँ श्रीमती श्यामसुन्दरी ने सारी तैयारी की है । श्रीरामकृष्ण आसन पर बैठे, नाना प्रकार की मिठाई तथा उत्तमोत्तम पदार्थों को देखकर वे हँसने लगे और खाते खाते कहने लगे - “मेरे लिए इतना तैयार किया है !" एक ग्लास में बरफ डाला हुआ जल भी पास ही था ।
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केशव आदि भक्तगण भी आँगन में बैठकर खा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण नीचे आकर उन्हें खिलाने लगे । उनके आनन्द के लिए पूड़ी-मिठाई का गाना गा रहे हैं और नाच रहे हैं ।
अब श्रीरामकृष्ण दक्षिणेश्वर को रवाना होंगे । केशव आदि भक्तों ने उन्हें गाड़ी पर बिठा दिया और पदधूलि ग्रहण की ।
(क्रमशः)

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