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*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
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*दादू अहनिशि सदा शरीर में,*
*हरि चिंतत दिन जाइ ।*
*प्रेम मगन लै लीन मन,*
*अन्तरगति ल्यौ लाइ ॥*
*साभार ~ @Chetan Ram*
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🌼 शबरी की प्रतीक्षा राम के लिए थी… लेकिन उसका प्रेम — शिव को भी झुका गया। शबरी अब अकेली थीं। राम जा चुके थे। राह तकते-तकते… अब ना पाँवों में गति थी, ना हाथों में फूलों की थाली। वो उसी चबूतरे पर बैठी थीं — जहाँ कल राम बैठे थे। आँखें धीरे-धीरे मुंदने लगी थीं… लेकिन मन अब भी राम में डूबा था।
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🍂 उसी रात — शिव प्रकट हुए।
माँ पार्वती साथ थीं। शबरी ने आँखें खोलीं… पर कुछ दिखाई नहीं दिया। लेकिन भक्ति तो आँखों से नहीं, हृदय से देखती है। धीरे से बोली — “प्रभु… आप तो राम हैं?” शिव मुस्कराए। “नहीं देवी… आज मैं उस प्रेम को देखने, समझने और वंदन करने आया हूँ — जो तुमने मेरे राम को दिया।”
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पार्वती मौन थीं। शबरी की कुटिया में वो चुपचाप खड़ी थीं — वो प्रेम, वो प्रतीक्षा, वो त्याग… जिसे उन्होंने खुद भी कभी इतनी तीव्रता से नहीं जिया। शिव झुके। उनके नेत्र नम थे।
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“शबरी… जो राम को अपना मान लेता है, उसे मैं भी अपना मान लेता हूँ। पर आज मैं भिक्षा माँगने आया हूँ… क्या वही बेर दे सकती हो, जो तुमने कल मेरे राम को दिए?”
शबरी ने कहा —
“वो तो बच गए हैं प्रभु… सूख चुके हैं… कल रात से वैसे ही रखे हैं।”
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शिव ने मुस्कराकर कहा — “वही चाहिए मुझे। क्योंकि जो प्रेम से दिया गया हो — वो कभी बासी नहीं होता। राम ने प्रेम लिया… अब मैं उसे प्रसाद मानकर स्वीकार करता हूँ।”
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शिव ने बेर मुख में रखे। नेत्र मूँद लिए। और मुख से निकला — “भक्ति न तर्क से आती है, न शास्त्र से… भक्ति सिर्फ समर्पण से आती है… और तू समर्पण है, शबरी।” शबरी बस सुनती रही… और फिर मौन हो गई। नेत्र बंद हुए। शरीर शांत हुआ। और आत्मा — राम में लीन हो गई।
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शिव और पार्वती कुछ देर वहीं बैठे रहे… जैसे कोई प्रिय — किसी अपने के जाने के बाद, थोड़ी देर और उसके पास बैठना चाहता हो।
🌿 क्या आपने कभी ऐसा प्रेम देखा है? जहाँ ना माँगा कुछ… ना पाया कुछ… बस प्रतीक्षा थी, समर्पण था, और एक चुपचाप मिलन।
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अगर कभी आपको भी ऐसा प्रेम मिला हो — या आपने कभी किसी को पूरी आत्मा से चाहा हो — इस पोस्ट को उनके साथ ज़रूर साझा करें, जो उस प्रेम को समझ सकें। शायद… शबरी हम सबके भीतर अभी भी जीवित है।
🌿और हाँ…
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"हर किसी के जीवन में एक चबूतरा होता है… जहाँ प्रतीक्षा चलती रहती है… और कभी ना कभी — भगवान वहाँ अवश्य आते हैं।" "जब शिव भी झुक जाएँ — एक साधारण भक्तिन के प्रेम के आगे… तब समझो, भक्ति क्या होती है।"
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