बुधवार, 30 अप्रैल 2025

*अज्ञान-निशा-नाश ॥*

🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷🙏 *#बखनांवाणी* 🙏🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*बखनां~वाणी, संपादक : वैद्य भजनदास स्वामी*
*टीकाकार~ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण~महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
.
*जाग रे सब रैण बिहांणी,*
*जाइ जन्म अंजलि को पाणी ॥*
*घड़ी घड़ी घड़ियाल बजावै,*
*जे दिन जाइ सो बहुरि न आवै ॥*
*सूरज चंद कहैं समझाइ,*
*दिन दिन आयु घटती जाइ ॥*
==============
*अज्ञान-निशा-नाश ॥*
सोइ जागे रे सोइ जागे रे, राम नाम ल्यौ लागे रे ॥टेक॥
आप अलंबण नींद अयाणा, जागत सूता होइ सयाणा ।
तिहि बरियाँ गुर आया, जिनि सूता जीव जगाया ॥
थी तौ रैंणि घणैंरी, नींद गई तब मेरी ।
डरताँ पलक न लाऊँ, हूँ जाग्यौ और जगाऊँ ॥
सोवत सुपिना माँहिं, जागूँ तौ कछु नाहीं ।
सुरति की सुरति बिचारी, तब नेहा नींद निवारी ॥
एक सबद गुर दीया, तिहिं सोवत बैठा कीया ।
बषनां साध सभागा, जे अपनैं पहरै जागा ॥४४॥
“या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥
गीता २/६९॥
.
जिनकी चित्तवृत्ति रामनाम में लग जाती है वही जागा हुआ कहा जाता है, वास्तव में वही विवेकवान कहा जाता है । अज्ञान निद्रा में आकंठ डूबे हुए अज्ञानी भी स्वात्मतत्त्व का आश्रय ले लेने पर विवेकी होकर ब्रह्मात्मैक्य रूपी ज्ञान सम्पन्न होकर स्वात्मस्थ हो जाते हैं । (अन्यों की स्थिति बताकर अब बषनांजी अपनी स्थिति बताते हैं)
.
जब संसार के अनेकों लोग अज्ञान रूपी निशा में सोये हुए पड़े थे, तब सद्गुरु महाराज का अवतरण इस पृथिवी पर हुआ । उन्होंने अनेकों अज्ञानी जीवों को रामनाम स्मरण के मार्ग पर लगाकर वैराग्य-भक्ति-ज्ञान सम्पन्न बना दिया । उससमय मेरे में भी अपार अज्ञान था किन्तु गुरु महाराज के ज्ञानोपदेश से मेरी अज्ञता रूपी निशा का सर्वथा नाश हो गया ।
.
परमात्म-चिंतन छूटकर पुनः संसार-चिंतन न होने लगे, इस डर से डरकर मैं तनिक देर के लिये भी नींद का आश्रय नहीं लेता; विषयों का चिंतन तो दूर अनासक्तभाव से भी उनका भोग नहीं करता । मैं स्वयं भी संसार तथा संसार के भोगविलासों से सर्वथा दूर रहकर परमात्म-चिंतनरत रहता हूँ, अन्यों को भी परमात्म-चिंतन की ओर लगाता हूँ ।
.
अज्ञान रूपी निद्रा में सोने पर स्वप्ने रूपी संसार की सत्ता सत्यवत् प्रतीत होती है किन्तु जैसे ही गुरुज्ञान का आश्रय पाकर मैं रामनाम आश्रित होता हूँ वैसे ही सारा संसार ही नाशवान, क्षणिक तथा अप्रिय लगने लगता है । जब से मैंने चित्तवृत्ति की स्थिति का विचार किया है, जब से मन को नियंत्रित करने का प्रयत्न करना प्रारम्भ किया है तब से ही संसार के प्रति संस्कार रूप से विद्यमान राग रूपी निद्रा को त्याग दिया है ।
.
गुरु महाराज ने रामनाम रूपी एक शब्द का स्मरण-मनन का उपदेश दिया । उसी ने मुझ सोते हुए को जाग्रत कर दिया । बषनां कहता है, वही साध = साधक सौभाग्यवान है जो अपने पहरे = अपने मनुष्य जन्म के अवसर पर चेतकर रामनाम स्मरण में लग गया ॥४४॥
“मोह निसा सब सोवनिहारा ।
देखिय सपन अनेक प्रकारा ॥
मानहूँ तबहि जीव जग जागा ।
जब सब विषय विलास बिरागा ॥”
मानस॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें