🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
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*कहबा सुनबा मन खुशी, करबा औरै खेल ।*
*बातों तिमिर न भाजई, दीवा बाती तेल ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ साँच का अंग)*
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*श्री रज्जबवाणी सवैया ग्रन्थ ~ भाग ३*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ Tapasvi Ram Gopal
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*साँच चाणक का अंग १४*
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साखी कही सु कहा कहैं आखि१,
कहै जु श्लोक सु लोक न पायो ।
जोरे२ कवित्त न वित्त जुर्यो तत्व,
गीत गयें३ गति४ मांहि न आयो ॥
गाथा सु ग्रंथ ग्रथ्यो नहिं गोविन्द,
पाठ पदौं पद में न समायो ।
हो रज्जब राम रटे बिन बाद५,
सँवारि६ सवैये सु ह्वै न सवायो७ ॥१५॥
जिनने साखी बना कर कही है सो साखी क्या उनकी साक्षी१ देंगी ? जिनने श्लोक बनाकर कहे हैं उनने भी प्रभु लोक नहीं पाया है ।
कवित्त जोड़ने२ से तत्त्व ज्ञान रूप धन नहीं जुड़ता । गीत गाने३ से मुक्ति४ की अवस्था में नहीं आता ।
गाथा तो ग्रथित की किंतु गोविन्द से मन को नहीं गूंथा तब क्या है ? पदों का पाठ रचने से प्रभु पद में नहीं समाता है ।
राम नाम के चिंतन बिना व्यर्थ५ सवैये बनाकर६ कोई श्रेष्ठ७ नहीं होता ।
(क्रमशः)
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