रविवार, 11 मई 2025

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*🌷🙏🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷*
*🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷*
*नाहीं ह्वै करि नाम ले, कुछ न कहाई रे ।*
*साहिब जी की सेज पर, दादू जाई रे ॥*
*साभार ~ @Subhash Jain*
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"शुद्र, वैश्य, क्षेत्रीय, ब्राह्मण" ये चार व्यक्तित्व के ढंग है। शूद्र वह है,,,जो परम आलस्य से भरा है। जिसे कुछ करने की इच्छा नहीं है। कुछ होने की इच्छा नहीं है। खाना मिल जाये, वस्त्र मिल जायें, बस काफी है। वह जी लेगा। और जो इस तरह जी रहा है, वह शूद्र है। तुममें से अधिक लोग शूद्र की भांति जी रहे हैं। तुम किसी और को शूद्र मत कहना। तुम क्या कर रहे हो ? खाना-कपड़े, इनको कमा लेना। रात सो जाना, सुबह उठ कर फिर कमाने में लग जाना। जन्म से लेकर मृत्यु तक तुम्हारी प्रक्रिया शूद्र की है। इसलिए मनु कहते हैं कि हर आदमी शूद्र की भांति पैदा होता है। ब्राह्मणत्व तो एक उपलब्धि है।
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दूसरा वर्ग है,,, जिसके लिए जीवन लग जाये लेकिन धन इकट्ठा करना है, पद इकट्ठा करना है, वह वैश्य है। चाहे सब खो जाये, आत्मा बिक जाये उसकी, कोई हर्जा नहीं है, लेकिन तिजोरी भरनी चाहिए। आत्मा बिलकुल खाली हो जाये, लेकिन तिजोरी भरी होनी चाहिए। बैंक-बैलेंस असली परमात्मा है। धन असली धर्म है। वह भी तुम्हारे भीतर है। उसको मनु ने वैश्य कहा है। इस वैश्य शब्द को थोड़ा सोचो। जो स्त्री अपने शरीर को बेचती है, उसे हम वेश्या कहते हैं। *और जो अपनी आत्मा को बेचता है उसे मनु ने वैश्य कहा है। वह वेश्या से बुरी हालत में है।*
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एक तीसरा वर्ग है,,, जिसकी जिंदगी में अहंकार के सिवाय और कुछ भी नहीं है। जो किसी भी तरह, ‘मैं सब कुछ हूं’, बस, इस मूंछ पर ही ताव देता रहता है। वह क्षत्रिय है। वह हमेशा तलवार पर धार रखता रहता है। उसको अहंकार के सिवाय कोई रस नहीं। धन जाये, जीवन जाये, सब दांव पर लगा देगा। लेकिन दुनिया को दिखा देगा, कि मैं कुछ हूं। ना-कुछ नहीं। वह एक वर्ग है। तीसरी दौड़ अहंकार की दौड़ है, कि मैं सब कुछ हूं।
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और एक चौथा वर्ग है, जो सिर्फ ब्रह्म की तलाश में है। जो कहता है: और सब व्यर्थ है। न तो आलस्य का जीवन अर्थपूर्ण है, क्योंकि वह प्रमाद है। होश चाहिये। न धन के पीछे दौड़ अर्थपूर्ण है, क्योंकि वह कहीं भी नहीं ले जाती। उससे कोई कहीं पहुंचता नहीं। धन तो मिल जाता है, आत्मा खो जाती है। नहीं, ब्रह्म से कम पर राजी नहीं होना है। ब्राह्मण कहता है, तुम कुछ भी नहीं हो, तभी तो जीवन का परम धन उपलब्ध होगा।
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जब तुम नहीं रहोगे, तभी तो ब्रह्म उतरेगा। आलस्य तोड़ना है शूद्र जैसा; धन की दौड़ छोड़नी है वैश्य जैसी; अहंकार छोड़ना है क्षत्रिय जैसा; तब कभी कोई ब्राह्मण हो पाता है। ये चार व्यक्तित्व के ढंग हैं। ऐसे चार तरह के लोग हैं जमीन में।
इन चार में तुम बराबर बांट लोगे। पांचवां आदमी तुम न पाओगे। और चार से कम में भी काम न चलेगा, तीन से भी काम न चलेगा। इसलिए दुनिया में जितने भी मनुष्यों को बांटने के प्रयोग हुए हैं, सबने चार में बांटा है।
ओशो; दीया तले अंधेरा

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