*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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फिर तो दादूजी का जीवन ही पलट गया । वे निरंतर भगवद् भजन में ही लीन रहने लगे और अपने पिता का धन परोपकार में लगाने लगे । वह पिता को सहन नहीं हुआ इससे पिता उनको अलग कर दिया और कुछ धन दे दिया । दादूजी ने पिता के दिये हुये धन को भी परोपकार में खर्च कर दिया ।
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१८ वर्ष की आयु में दादूजी ने घर छोड दिया और पेटलाद, आबू आदि अनेक स्थानों में भ्रमण करते हुये राजस्थान के परबतसर नगर से चार मील उत्तर की और करडाला ग्राम के पर्वत पर एक ककेडे वृक्ष के नीचे साधन करना आरंभ कर दिया । छ: वर्ष कठोर तपस्या करने पर भगवान् ने आपको दर्शन दिये ।
फिर वहां से मोरडा पधारे, मोरडा साँभर पधारे ।
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साँभर में दादूजी के साथ अति संघर्ष होता रहा परन्तु अंत में भगवान् की कृपा से सब संघर्ष शान्त हो गया और प्रतिपक्षी भी दादूजी के भक्त बन गये । साँभर में १२ वर्ष रह कर आप आमेर पधारे । आमेर में आप १४ वर्ष रहे । बीच - बीच में भक्तों के आग्रह से अन्य स्थानों में भी पधारते थे ।
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आमेर से ही अकबर बादशाह के बुलाने पर सीकरी गये थे और ४० दिन तक अकबर को उपदेश देकर के अनेक स्थानों के भक्तों को अपने उपदेशामृत से कृतार्थ करते हुये आमेर पधारे थे । आमेर में १४ वर्ष पूरे होने पर वि. सं. १६५१ में मारवाड की और आये । इस समय दादूजी की आयु ५१ वर्ष की हो गई थी ।
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७ वर्ष तक मारवाड और कुछ दिन ढूंढार के कुछ ग्रामों में भ्रमण करके पुन: करडाला आये और वहां से मोरडा पधारे । मोरडा से नारायणा नरेश नारायणसिंह ने दादूजी को नारायणा में बुलाया और तालाब के पश्चिम तट पर आश्रम बनवाकर उसमें विराजने की प्रार्थना की । दादूजी ने उस आश्रम में निवास किया । फिर नारायणसिंह अपनी प्रजा के सहित दादूजी की सेवा में तत्त्पर रहने लगे ।
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नारायणा में ही वि. सं. १६६० जेष्ठ कृष्णा अष्टमी शनिवार तक दादूजी की आयु ५८ वर्ष २ मास १५ दिन की हुई थी । उसी दिन आप ब्रह्मलीन हुये थे । दादू पंथ के आद्याचार्य दादूजी महाराज का यह अति संक्षिप्त परिचय है । विशेष “श्रीदादू चरितामृत” ग्रंथ में अवश्य देखें, वह देखने ही योग्य है ।
(क्रमशः)
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